आखिर क्यों खाई जाती है खिचड़ी ?

Edited By Lata,Updated: 11 Jan, 2019 03:52 PM

why eating khichdi on makar sankranti

इस बात का तो सब जानते ही हैं कि खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत मकर संक्रांति के साथ हो जाती है।

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इस बात का तो सब जानते ही हैं कि खरमास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत मकर संक्रांति के साथ हो जाती है। मकर संक्रांति को कुछ लोग खिचड़ी का त्योहार भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार को प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। हर साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। जब सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को नहीं बल्कि 15 जनवरी को है। 14 जनवरी को देर रात में सूर्य अपनी राशि बदलेगा, इस कारण अगले दिन यानि 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन खिचड़ी खाने का खास महत्व शास्त्रों में बताया गया है। मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने और खाने का अपना ही अलग खास महत्व है। हर जगह इसे अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है। कोई चावल और मूंग की दाल डालकर सिंपल खिचड़ी बनाता है तो कोई कई तरह की सब्जियां खासकर गोभी डालकर इसे बनाते हैं।
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कहा जाता है कि खिचड़ी बनाने के पीछे भी ग्रहों का शांत होना माना जाता है। जहां चावल को चंद्रमा का प्रतीक मनाते है तो काली दाल को शनि और सब्जियों को बुध ग्रह का प्रतीक माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से ग्रहों की स्थिति मज़बूत होती है। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में-
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इस कथा की पौराणिक मान्यता बाबा गोरखनाथ से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे। योगियों की बिगड़ती हालत को देखकर बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का हल निकालते हुए दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह भोजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट था। इससे शरीर को उर्जा भी मिलती थी। योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद भी आया। उसके बाद से ही बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन को खिचड़ी नाम दिया।
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इतनी जल्दी तैयार होने वाली खिचड़ी से योगियों को भोजन से होने वाली परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाने लगा। तब से लेकर आज तक इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला लगया है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
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