बुद्धि के प्रदाता बप्पा क्यों कहलाते हैं एकदंत ?

Edited By Jyoti,Updated: 28 Aug, 2019 12:10 PM

why is bappa the provider of wisdom called ekadanta

हिंदू धर्म के शास्त्रों में भगवान गणेश के कई नाम बताए गए हैं। जैसे गजानन, गणपति, बप्पा, विघ्नहर्ता व एकदंत। कहा जाता ये सारे नाम इन्हें किसी न किसी कारण वश दिए गए हैं।

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हिंदू धर्म के शास्त्रों में भगवान गणेश के कई नाम बताए गए हैं। जैसे गजानन, गणपति, बप्पा, विघ्नहर्ता व एकदंत। कहा जाता ये सारे नाम इन्हें किसी न किसी कारण वश दिए गए हैं। आज हम आपको इन्ही में से एक नाम के पीछे की कथा बताने वाले हैं। जिस नाम के बार में तो शायद हर कोई जानता है मगर भगवान गणेश जी का ये नाम पड़ा कैसे व क्यों ये बहुत कम लोगों को पता होगा।

एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि ।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि ॥

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ये श्लोक आप में से बहुत से लोगों ने सुना होगी। दरअसल ये श्लोक गणपति वंदना का है। जिसमें हम एकंदत यानि एक दांत वाले भगवान गणेश की प्रार्थना करते हैं। गणपति की ये वंदना उनका आशीर्वाद पाने के लिए व अपनी मनोकामनाओं के पूर्ति के लिए किया जाता है। इन्हें एकदंत इनके एक टूटे दांत की वजह से कहा जाता है। मगर इनका दांत टूटा कैसे इस बात से आज भी बहुत से लोग अंजान है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भगवान गणेश का ये दांत किसने व क्यों तोड़ा।

कहा जाता है महाभारत हिंदू धर्म का सबसे बड़ा महाकाव्य है। इसमें करीबन 1,10,000 श्लोक है। हिंदू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं महाभारत के अनुसार इस काव्य के रचनाकार वेदव्यास जी हैं। जिन्होंने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। लेकिन बताया जाता है कि इसे लिखने वाले भगवान गणेश थे।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि व्यास जी किसी ऐसे व्यक्ति की खोज कर रहे थे जो इसमें लिखे जाने वाले एक-एक श्लोक को समझकर लिखे। इसी के चलते महाभारत के प्रथम अध्याय में किए उल्लेख के अनुसार उन्होंने यानि वेद व्यास जी ने गणेश जी को इसे लिखने का प्रस्ताव दिया था जिसके लिए गणेश जी तैयार भी हो गए मगर उनकी शर्त ये थी कि महर्षि कथा लिखवाते समय एक पल के लिए भी रुकेंगे नहीं।
 

महर्षि ने उनकी शर्त मान ली मगर भगवान गणेश से कहा कि आप एक भी वाक्य को बिना समझे नहीं लिखेंगे। प्रचलित कथाओं के अनुसार महाभारत का ग्रंथ लिखते-लिखते कलम टूट गई जिसके बाद उन्होंने अपना दांत तोड़कर उसे स्याही में डूबोकर उसी से महाभारत का ग्रंथ लिखा था। जिसके कारण उन्हें एकदंत कहा जाने लगा।
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