क्यों शास्त्रों में महिलाओं को साष्टांग प्रणाम है मना ?

Edited By Jyoti,Updated: 09 Jun, 2019 05:20 PM

why is the worship of women prostrated in the scriptures

अक्सर आप लोगों ने देखा होगा कि कुछ लोग मंदिर आदि में देवी-देवता को साष्टांग प्रणाम करते दिखाई देते हैं। इन में ज्यादातर पुरुष होते हैं।

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अक्सर आप लोगों ने देखा होगा कि कुछ लोग मंदिर आदि में देवी-देवता को साष्टांग प्रणाम करते दिखाई देते हैं। इन में ज्यादातर पुरुष होते हैं। अगर कोई महिला किसी को साष्टांग प्रणाम करती हैं तो उसे तुंरत मना कर दिया जाता है। हालांकि कुछ महिलाएं फिर भी इसे करती हैं। लेकिन आपको बता दें कि ऐसा करना शास्त्रों में अच्छा नहीं है। हम में से ऐसे बहुत से लोग होंगे जो शास्त्रों की बातों का नज़रअंदाज़ करते हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि हिंदू धर्म के ग्रंथों में ऐसी बहुत सी बातें लिखी हैं जो हर व्यक्ति के लाभदायक होती हैं। तो आइए जानें हिंदू शास्त्रों में इससे जुड़ा एक श्लोक-
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साष्टांग प्रणाम-
पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरसतथा।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोअष्टाड्ग मुच्यते॥

व्यक्ति किसी को यदि सिर, हाथ, पैर, हृदय, आंख, जांघ, वचन और मन इन आठों को मिलाकर सीधा ज़मीन पर लेट कर प्रणाम करे तो उसे साष्टांग प्रणाम बोलते हैं। साष्टांग प्रणाम करने में ठुड्डी, छाती, दोनों हाथ, दोनों घुटने और पैर अर्थात व्यक्ति का पूरा शरीर पैरों से लेकर सिर तक जमीन का स्पर्श करता है। साष्टांग प्रणाम करते समय पेट का स्पर्श जमीन पर नहीं होना चाहिए।
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1 सिर झुकाना, 2 हाथ जोडऩा, 3 दोनों, एक साथ सिर झुकाना और हाथ जोड़ना, 4 हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना, 5 हाथ जोडऩा, दोनों घुटने झुकाना और सिर झुकाना या 6 दंडवत प्रणाम अर्थात् साष्टांग प्रणाम इन 6 प्रकार के नमस्कारों से किया जाता है।

ये सभी प्रणाम व्यक्ति को धार्मिक  बनाते हैं। ये 6 प्रकार के प्रणाम करने से व्यक्ति का जीवन सार्थक होता है और उसके कर्म सुधरते हैं परंतु साष्टांग प्रणाम महिलाओं को नहीं करना चाहिए क्योंकि साष्टांग प्रणाम करने से स्त्री का शरीर ज़मीन को स्पर्श करेगा जबकि स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी ज़मीन से स्पर्श नहीं होने चाहिएं क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है। उसके गर्भ से ही सृष्टि का चक्र चलता है। यहीं से मानव की उत्पत्ति होती है और उसके वक्ष से जीवन को पोषण मिलता है। बच्चे का शरीर गर्भ में बनता है और 9 माह तक गर्भ में ही उसका जीवन होता है। बाहर आने के पश्चात मां के दूध से उसका पालन होता है। इसी कारण महिलाआें को कभी साष्टांग प्रणाम नहीं करना चाहिए। 
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—ज्योतिर्विद बॉक्सर देव गोस्वामी

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