शुक्र को भोग-विलास का ग्रह क्यों माना जाता है

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jan, 2019 09:25 AM

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शुक्र को भोग-विलास, कला, प्रेम, आकर्षण तथा सौंदर्य की देवी कहा जाता है। शुक्र मनुष्य को प्रेम रोग और विषय वासनाओं में डूबा कर रखता है तो दूसरी ओर मातृत्व का भी प्रतीक है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में यह कामवासना का प्रतीक है। शुक्र देव एक आंख वाले...

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शुक्र को भोग-विलास, कला, प्रेम, आकर्षण तथा सौंदर्य की देवी कहा जाता है। शुक्र मनुष्य को प्रेम रोग और विषय वासनाओं में डूबा कर रखता है तो दूसरी ओर मातृत्व का भी प्रतीक है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में यह कामवासना का प्रतीक है। शुक्र देव एक आंख वाले हैं, अशुद्ध आचरण करने वाले, राशियों की बात करें तो वृष और तुला राशि पर इनका अधिकार है। शुक्र ग्रह को सौरमंडल में बृहस्पति के पश्चात दूसरा मंत्री पद दिया गया है। स्वभाव से शुक्र- कामुक, स्वार्थी, विलासी, संगीत, गायन तथा काव्य अनुरागी, स्त्री प्रिय, जलात्व प्रधान, रजोगुणी युवावस्था वाला स्त्री ग्रह है। इनका स्वामीत्व शुक्रवार पर स्थापित है और अंक 6 है। कुंडली में जिन लोगों पर शुक्र की पकड़ मजबूत होती है, वह कामक्रीड़ा में तल्लीन रहते हैं, कामुक चेष्टाओं में उनका मन रमता है, नाच-गाने के शौकीन, सुन्दर वस्त्र पहनने वाले, आभूषणों से सज-धज कर रहने वाले होते हैं।

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अंक 6 शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र के अच्छे-बुरे प्रभाव से पत्नी अथवा प्रेमिका का सुख तथा स्त्री-वर्ग से लाभ मिलता है। बलवान शुक्र वाला जातक धनी, व्यापारी, वाहन सुख प्राप्त करने वाला, रूपवान, सुंदर तथा कामेच्छा से भरा होता है। यह ग्रह वीर्य, त्वचा का रंग, हाव-भाव एवं आकर्षण का कारक है।

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शुक्र ग्रह की विभिन्न स्थितियों के अनुसार व्यक्ति को ये सब प्राप्त होता है जैसे पत्नी-प्रेमिका, उच्च-स्तर का रहन-सहन, भोग-विलास, मदिरापान, संगीत बड़ा व्यापार, मनोरंजन, होटल व्यवसाय, वाहन, पृथ्वी में गड़ा हुआ धन, लाटरी, खजाना और अचानक ख्याति। कविताएं करने की कला, प्रेम संबंध तथा विरह शुक्र के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं। यदि शुक्र अशुभ हो तो जातक प्रेम रोगी, स्त्री संसर्ग से हानि उठाने वाला, मूत्राशय, आंखों अथवा चर्म रोगी तथा मैथुन रोगी होता है।

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प्रभावशाली शुक्र होने से व्यक्ति किशोरावस्था से ही स्त्री प्रेमी, गोल चेहरे और घुंघराले चमकदार केशों वाला, धनी और विपरीत योनि के साथ विचरण करने में कुशल होता है। आधुनिक जगत के मनोरंजन स्थलों, कैबरे, थिएटर, रेडियो, टी.वी. और फिल्म जगत में शुक्र प्रधान पुरुष और महिलाएं छाई हुई हैं। यह ग्रह जहां व्यक्ति को अभिनेता, नाटककार, कवि, उपन्यासकार, गायक, चित्रकार, जौहरी, व्यापारी, राजनेता और प्रेमी-स्वभाव का बनाता है, वहां इसके प्रभाव से जातक, ज्योतिषी, तांत्रिक, जादूगर, कोषाध्यक्ष, तस्कर, हलवाई, होटल प्रबंधक, हीरा, चांदी का व्यापारी और सुगन्धित प्रसाधनों का व्यवसायी बनता है।

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प्रभावहीन शुक्र से निष्फल प्रेम, स्त्री से धोखा, निर्बल कामेच्छा, विवाह-विच्छेद अथवा स्त्री के द्वारा त्याग दिया जाना आदि फल होता है। भौतिक जगत में शुक्र का प्रभाव सफलता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है, क्योंकि सभी प्रकार के सांसारिक सुख, भोग-लिप्सा और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति शुक्र के द्वारा होती है। इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए हीरा धारण करना तथा लक्ष्मी स्तुति करना हितकर होता है। शुक्र यदि प्रभावहीन हो तो व्यक्ति का जीवन नीरस, एकान्तमय, उपहास का पात्र, सुख-साधनों से हीन, गरीबी तथा फकीरी का माहौल पैदा हो जाता है। शुक्र का शुभ प्रभाव 24 से 42 वर्ष की आयु के बीच मिलता है।

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