Kundli Tv- क्यों श्रीकृष्ण ने किया था कर्ण का अंतिम संस्कार

Edited By Jyoti,Updated: 24 Aug, 2018 02:24 PM

why krishna did the last rites of karna

महाभारत की बात करे तो एेसे कई पात्र जिनका नाम आज भी याद किया जाता है। श्रीकृष्ण के अलावा पांडवों को महाभारत के नायक के रूप में जाना जाता है। लेकिन कौरवों को इतने मान-सम्मान से नहीं देखा जाता। लेकिन कौरवों में से कर्ण को उनका साथ देने के बावज़ूद भी...

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महाभारत की बात करे तो एेसे कई पात्र जिनका नाम आज भी याद किया जाता है। श्रीकृष्ण के अलावा पांडवों को महाभारत के नायक के रूप में जाना जाता है। लेकिन कौरवों को इतने मान-सम्मान से नहीं देखा जाता। लेकिन कौरवों में से कर्ण को उनका साथ देने के बावज़ूद भी बड़े आदर-सम्मान के साथ देखा जाता है। उनके साथ अन्याय के कारण आज भी लोग उनके प्रति अपार प्रेम-भाव रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि साधारण इंसान के साथ-साथ श्री कृष्ण तक उनके सिद्धांतों के कारण उन्हें एक महान योद्धा मानते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे।
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महाभारत की इस कहानी के बारे में तो सब जानते होंगे कि युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने छल करके इंद्र की मदद लेकर कर्ण के कवच-कुंडल दान में ले लिए थे। लेकिन आज हम आपको इसके बाद की एक बात बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार श्रीकृष्ण स्वयं भी कर्ण की परीक्षा लेने के लिए आए थे जिस परीक्षा में कर्ण सफल हुए थे। तब श्रीकृष्ण ने कर्ण से खुश होकर वरदान मांगने को कहा था।

यहां जाने श्रीकृष्ण और कर्ण से जुड़ी ये कथा
जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया। कर्ण ने अपने पास पड़ा पत्थर उठाया  और अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। इससे दानवीर कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया। यह सब देखकर भगवान कृष्ण काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं। 
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पहला वरदान
इस पर कर्ण ने श्रीकृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब श्रीकृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने की कोशिश करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे।

दूसरा वरदान
दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में श्रीकृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें।
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तीसरा वरदान
तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप न हो। उनकी इस इच्छा को सुनकर कृष्ण दुविधा में पड़ गए थे क्योंकि पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां एक भी पाप नहीं हुआ हो। ऐसी  कोई जगह न होने के कारण कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर  किया। इस तरह दानवीर कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए।
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