Kundli Tv- जानें, भगवान कैसे सुनते हैं भक्तों की पुकार

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Jun, 2018 01:37 PM

without guru our life will be like hell

प्रत्येक मनुष्य की मूल आवश्यकता है कि वह प्रेम कर सके और प्रेम पा सके। जब मनोवैज्ञानिक मनुष्य की मूल आवश्यकताओं की बात करते हैं तो भोजन, मकान व सुरक्षा के साथ-साथ वे प्रेम को भी इसमें शामिल करते हैं।

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प्रत्येक मनुष्य की मूल आवश्यकता है कि वह प्रेम कर सके और प्रेम पा सके। जब मनोवैज्ञानिक मनुष्य की मूल आवश्यकताओं की बात करते हैं तो भोजन, मकान व सुरक्षा के साथ-साथ वे प्रेम को भी इसमें शामिल करते हैं। साधारणतया, व्यक्ति बाहरी दुनिया में अपने माता-पिता, भाई-बहनों और रिश्तेदारों से प्रेम की उम्मीद करते हैं। बड़े होने के साथ ही वे अपने मित्रों, पति या पत्नी और अपने बच्चों से प्रेम की उम्मीद करते हैं। दुर्भाग्य से, जीवन में कभी-कभी हम यह सीखते हैं कि ये प्रेम अस्थायी होते हैं। संबंध बदलते रहते हैं। बच्चें दूर चले जाते हैं और माता-पिता गुजर जाते हैं। किसी न किसी समय पर, इस दुनिया से प्रेम खो जाने पर हमें दुख का अहसास होता है।

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अक्सर, दुनियावी प्रेम के खो जाने पर हम प्रभु की ओर मुड़ते हैं। जब प्रभु हमारी पुकार सुनते हैं, वे हमें किसी ऐसे व्यक्ति के पास भेज देते हैं जो हमें दिखा सकता है कि हमारे भीतर शाश्वत प्रेम सदा विद्यमान रहता है। 

एक सद्गुरु हमें प्रभु के प्रेम से जोड़ देता है। युगों-युगों से सद्गुरु हमें शाश्वत प्रेम पाने का तरीका बताते आए हैं। सद्गुरु हमें ध्यान का अभ्यास करना सिखाते हैं। जब हम अध्यात्म पथ पर अग्रसर होते हैं तो हम प्रभु के प्रेम का अनुभव करते हैं। प्रभु को बुद्धि के माध्यम से अनुभव नहीं किया जा सकता। प्रभु प्रेम है और हमारे भीतर बसती आत्मा भी प्रेम है। प्रभु का अनुभव करने के लिए हमें उन परतों को उतारना है जो हमें दिव्य प्रेम का अनुभव करने से दूर रखती हैं।

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सद्गुरु प्रभु के प्रेम को हमारी ओर प्रसारित करते हैं। जब हम किसी वक्ता का व्याख्यान सुनते हैं, हम बौद्धिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। जब हम एक आध्यात्मिक गुरु के पास जाते हैं तो वहां हम बौद्धिक ज्ञान से कहीं अधिक पाते हैं। ज्ञान के साथ ही हम अपनी आत्मा के उत्थान का भी अनुभव करते हैं। सद्गुरु की संगत में शरीर से ऊपर उठने का अनुभव प्राकृतिक रूप से मिलता है। वह दयाधारा एक ऊर्जा है, जो हमारे विचार को शरीर से दिव्य चक्षु पर खींच लाती है।

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एक सद्गुरु की तवज्जों से हमारी आत्मा आत्मिक मंडलों का अनुभव करने लगती है। इस दिव्य अनुभव से हम उत्कृष्ट प्रेम में सराबोर हो जाते हैं। जब हम उस परमानंद को चख लेते हैं तो हमेशा उसी में डूबे रहना चाहते हैं। दिव्य प्रेम के सामने दुनिया के समस्त आकर्षण फीके होते हैं।

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