Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jun, 2020 10:38 AM
संगीत हर किसी का मन मोह सकता है। हर किसी को किसी न किसी तरह का संगीत पसंद होता ही है। संगीत की खास बात है कि यह एक ऐसी चीज है जो हमें खुशी और गम दोनों में समान रूप से रास आती है क्योंकि
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संगीत हर किसी का मन मोह सकता है। हर किसी को किसी न किसी तरह का संगीत पसंद होता ही है। संगीत की खास बात है कि यह एक ऐसी चीज है जो हमें खुशी और गम दोनों में समान रूप से रास आती है क्योंकि संगीत सुनते ही हम कई बार थिरकने लगते हैं तो वहीं कई बार हमारी आंखें नम हो जाती हैं। क्या आपको पता है कि साल में एक दिन संगीत को लेकर निर्धारित है जब संगीत को आम जनमानस तक प्रचारित-प्रसारित करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 21 जून को हर साल दुनिया के अलग-अलग देशों में ‘वर्ल्ड म्यूजिक डे’ मनाया जाता है।
इतिहास
यह आयोजन पहले-पहल फ्रांस में हुआ था जहां यह सर्वप्रथम वर्ष 1982 में मनाया गया और तब से यह सिलसिला अनवरत जारी है। फ्रांस में इस कार्यक्रम को ‘फेटे दे ला म्यूजिक’ के नाम से जाना जाता है।
कहते हैं साल 1976 में अमेरिका के मशहूर संगीतकार जोएल कोहेन ने फ्रांस में संगीत पर आधारित एक कार्यक्रम का आयोजन किया। तब से 21 जून की तारीख को हर साल ‘वर्ल्ड म्यूजिक डे’ मनाया जाता है।
अब ये कार्यक्रम दुनिया के अनेक देशों में आयोजित किया जाता है। अलग-अलग देशों के संगीतकार अपने-अपने वाद्ययंत्रों के साथ रात भर कार्यक्रम पेश करते हैं और संगीत को समृद्ध करते हैं।
बिना पैसे लिए सुनाते हैं गीत-संगीत
इस मौके पर अलग-अलग देशों के सफल और मशहूर संगीतकार लोगों के लिए पार्क, म्यूजियम, रेलवे स्टेशन और आम जगहों पर गीत-संगीत बजाते हैं। वे इसके एवज में कोई पैसा नहीं लेते। वे ऐसा करके जनता और म्यूजिक के बीच पुल का काम करते हैं।
अब इन कार्यक्रमों का आयोजन अर्जेंटीना, ब्रिटेन, लग्जमबर्ग, जर्मनी, चीन, लेबनॉन, कोस्टारिका के अलावा भारत में भी होने लगा है। संगीतकार इन कार्यक्रमों के माध्यम से पूरी दुनिया में अमन व शांति का प्रचार करना चाहते हैं।
जानिए कैसा है भारतीय शास्त्रीय संगीत
भारतीय शास्त्रीय संगीत भारतीय संगीत का अटूट अंग है। शास्त्रीय संगीत जिसे हम ‘क्लासिकल म्यूजिक के नाम से भी जानते हैं। हजारों साल पहले रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्त्रोत माना गया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो शैलियां हैं। इसमें से पहला है उत्तर भारतीय जिसे हिंदुस्तानी संगीत कहा जाता है जबकि दूसरा है दक्षिण भारतीय संगीत जिसे कर्नाटक संगीत के नाम से जाना जाता है।
उत्तर भारतीय संगीत
(हिंदुस्तानी संगीत)
उत्तर भारतीय संगीत में काफी बदलाव आए। समय के साथ संगीत मंदिरों तक सीमित न रह कर शासकों के दरबार की शोभा बन गया। मुगल काल में कुछ नई शैलियां भी प्रचलन में आईं जैसे खयाल, गजल आदि और भारतीय संगीत का कई नए वाद्यों से भी परिचय हुआ जैसे सरोद, सितार इत्यादि।
बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के कई हिस्सों में कई नई पद्धतियों और घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई नए वाद्य प्रचलन में आए। आम जनता में भी प्रसिद्ध आज का वाद्य हारमोनियम, उसी समय प्रचलन में आया। इस तरह भारतीय संगीत के उत्थान व उसमें परिवर्तन लाने में हर युग का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा।
उत्तर भारतीय संगीत, कर्नाटक संगीत
जहां हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित होता चला गया वहीं कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में प्रचलित हुआ। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में शृंगार रस।
दक्षिण की धारा ने बहुत हद तक अपने मूल स्वरूप को बचाए रखा लेकिन उत्तर की धारा में मुसलमानों के साथ आया अरबी, ईरानी और मध्य एशिया का संगीत घुलता-मिलता गया। इस वजह से ध्रुपद के स्थान पर खयाल, ठुमरी, टप्पा, तराना आदि सांगीतिक रूपों का जन्म हुआ और अंत में उनका वर्चस्व स्थापित हो गया।
कर्नाटक संगीत में कोई भी राग कभी भी गाया-बजाया जा सकता है लेकिन हिंदुस्तानी संगीत में रागों के गाने-बजाने के समय निर्धारित हैं। पूरे दिन को तीन-तीन घंटों के 8 प्रहर में बांट कर तय कर दिया गया है कि कौन-सा राग कब गाया-बजाया जाएगा और इसका सांगीतिक तर्क भी है।