आज रात किए गए इस काम का पुण्य सौ कल्पों तक भी नष्ट नहीं होगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jun, 2017 07:16 AM

yogini ekadashi fast on june 20

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है, इस बार यह व्रत 20 जून को है।

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है, इस बार यह व्रत 20 जून को है। पदमपुराण के अनुसार, भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है इसलिए जो लोग किसी भी पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं तथा अपनी सामर्थ्यानुसार दान पुण्य करते हैं वह अनेक प्रकार के संसारिक सुखों का भोग करते हुए अंत में प्रभु के परमधाम को प्राप्त होते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार श्री कृष्ण भगवान से बढक़र कोई देवता नहीं और एकादशी से बढक़र कोई व्रत नहीं है।


किस वस्तु का करें दान? 
दान चाहे किसी भी वस्तु का हो सदा ही पुण्यफलदायक होता है परंतु सदा ही भक्त को अपनी सामर्थ्यानुसार अन्न, जल, वस्त्र, फल, सोने, चांदी आदि वस्तुओं का दान करना लाभदायक होता है। शास्त्रानुासर किसी भी प्रकार का दान करते समय ब्राह्मण को दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।


व्रत में जागरण की महिमा
एकादशी व्रत में रात्रि जागरण की अत्याधिक महिमा है, स्कंदपुराण के अनुसार जो लोग रात्रि जागरण करते समय वैष्णवशास्त्र का पाठ करते हैं उनके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जो मनुष्य लोगों को वैष्णवशास्त्र का उपदेश करता है वह प्रभु की सच्ची भक्ति को प्राप्त करता है। जो लोग एकादशी की रात को प्रभु की महिमा का गुणगान नृत्य करते हुए करते हैं उन्हें आधे निमेष में ही अगिनषटोम तथा अतिरात्र यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। रात्रि जागरण से विष्णूस्हस्त्रनाम, गीता, श्रीमद भागवत का पाठ करने से भी सैंकड़ों गुणा अधिक लाभ मिलता है। इसके अतिरिक्त जो भक्त रात को भगवान विष्णु के मंदिर में दीपदान करता है, उसका पुण्य सौ कल्पों तक भी नष्ट नहीं होता तथा जो तुलसी मंजरी सहित श्री हरि का पूजन करता है वह संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है। स्नान के साथ ही चंदन, धूप, दीप, नेवैद्य और केले से एकादशी को रात्रि जागरण में पूजा करने वाले को अक्षय पुण्य फल मिलता है। 


क्या कहते हैं विद्वान?
अमित चड्डा के अनुसार अपनी एकादश इंद्रियों को भगवत सेवा में लगाना ही वास्तव में एकादशी व्रत है। उन्होंने कहा कि ‘शरणागति इज द सॉल्यूशन आफ आल प्राब्लम्स’। इसलिए भगवान की शरण में जाना ही सच्ची प्रभु भक्ति एवं नियम है। उन्होंने कहा कि एकादशी का व्रत तब तक सम्पूर्ण नहीं होता जब तक द्वादशी को उसका पारण विधिवत ढंग से न किया जाए। ‘गौडीय वैष्णव व्रत उत्सव निर्णय पत्रम’ के अनुसार व्रत का पारण 21 जून को प्रात: 9.25 से पहले किया जाना चाहिए।

 

प्रस्तुति : वीना जोशी,जालंधर 
veenajoshi23@gmail.com

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