Edited By Jyoti,Updated: 18 Dec, 2018 11:31 AM
आज यानि 18 दिसंबर 2018 को श्रीमद्भगवत गीता जयंती का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को अपने विराट रूप में गीता का उपदेश दिया था।
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आज यानि 18 दिसंबर 2018 को श्रीमद्भगवत गीता जयंती का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को अपने विराट रूप में गीता का उपदेश दिया था। कहते हैं अगर कोई इंसान अपने जीवन में श्रीमद्भगवद गीता का पाठ करता और उसमें दिए गए उपदेश को समझकर अपने जीवन में अपना लेता है तो उसका जीवन बहुत सरल हो जाता है। क्योंकि कहा जाता है कि श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करने वाले व्यक्ति पर बांके बिहारी श्रीकृष्ण हमेशा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं। तो आइए आज गीता जंयती के इस खास मौके पर जानते हैं श्रीमद्धभगवत की कुछ खास बातें, जिसे अगर जीवन में अपना लिया जाए तो हर काम में सफलता प्राप्त होती है।
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रंथों में से एक है। गीता जयंती मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। इसमें 18 अध्याय हैं, बता दें कि महाभारत का युद्ध भी 18 दिन तक ही चला था। गीता के 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान है, जो हर इंसान के सामने कभी न कभी आती हैं। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है।
श्रीमद्भगवत गीता कहती है कि जीवन रोने के लिए नहीं, भाग जाने के लिए नहीं है, हंसने और खेलने के लिए हैं। बल्कि जीवन हमें संकटों से, हिम्मत से लड़ने की प्रेरणा देता है और गीता ही इंसान को जीवन में प्रतिक्षण आने वाले छोटे-बड़े संग्रामों के सामने हिम्मत से खड़े रहने की शक्ति देती है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं हर काम में तुरंत नतीजा पाने के लिए अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ को अपने अंदर से निकालना होगा परंतु ये धैर्य के बिना अज्ञान नहीं हो सकता।
श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का सबसे दिव्य ग्रंथ है। ये इंसान को मरना सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता मनुष्य को पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।
गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं बल्कि ये एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसको हर किसी को पढ़ना चाहिए।
इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा है कि कर्तव्य ही धर्म है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी भी लाभ-हानि का विचार नहीं करना चाहिए।
इसमें भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, गीता के ज्ञान द्वारा विश्व के मानव को पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी है।
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