यात्रा: उन स्थानों की जहां श्री राधा कृष्‍ण का होता था मिलन, देखें तस्वीरें

Edited By ,Updated: 05 Sep, 2015 12:40 PM

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जहां आनन्द है वहीं प्रेम है और जहां प्रेम है वहीं आनन्द है। आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं।

जहां आनन्द है वहीं प्रेम है और जहां प्रेम है वहीं आनन्द है। आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं। दोनों ही मिलकर संसार के रहस्य के तत्वज्ञान को प्रकट करके सभी को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। श्री राधा और श्री कृष्ण के प्रेम की गहराई को दर्शाते बहुत से ऐसे स्थल हैं। जन्माष्टमी के शुभ दिन पर करें उन स्थलों के दर्शन-

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वृंदावन में यमुना पार भांडीर वन में स्वयं ब्रह्माजी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह संपन्न हुआ था। श्री राधा कृष्ण का संबंध निस्वार्थ प्रेम की अदृश्य बेड़ी से बंधा हुआ है। 

धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि निधिवन में भगवान् श्रीराधा एवं श्रीकृष्ण आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद (माखन मिश्री) प्रतिदिन रखा जाता है। शयन के लिए पलंग लगाया जाता है तथा प्रातः बिस्तर को देखने से प्रतीत होता है कि यहां निश्चित ही कोई रात्रि विश्राम करने आया था और भोजन भी ग्रहण करके गया है।

श्रीकृष्ण रहते थे नंद गांव में और राधा रानी रहती थी बरसाना गांव में। दोनों गांव के बीच में एक गांव है 'संकेत'। माना जाता है की लौक‌िक जगत में श्रीराधा कृष्‍ण की प्रथम भेंट यहीं पर हुई थी और आरंभ हुआ लौक‌िक प्रेम का।

बरसाने के पास एक छोटा सा स्थान है मोर-कुटी। एक समय लीला करते हुए राधा जी प्रभु से रूठ गई और मोर-कुटी पर जाकर बैठ गई। वहां एक मोर से लाड करने लगी। ठाकुर जी उन्हें मनाने लगे पर वह न मानीं। ठाकुर जी को उस मोर से इर्ष्या होने लगी। किशोरी जी ने ये शर्त रख दी कि बांके बिहारी मेरी नाराजगी तब दूर होगी जब तुम इस मोर को नृत्य प्रतियोगिता में हरा कर दिखाओगे। मोर ऐसा नाचा कि उसने ठाकुर जी को थका दिया। 

मयूर कुटी और मान मंदिर के मध्य गहवर वन है। जो नित्य विहार का स्थल है। मान्यता है की पांच हजार साल पहले इस वन को स्वयं राधारानी ने लगाया था। कहते हैं, गायों को चराने वाली ग्वारियों को आज भी इस वन में बंशी की धुन व राधारानी के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है।

कुमुदनी कुंड अथवा व‌िहार कुंड पर जब श्री कृष्‍ण गाय चराने आते तो अक्सर राधा रानी से यहीं भेंट करते थे।

नंदगांव छोड़ने के बाद उनकी मुलाकात कुरुक्षेत्र में हुई। सूर्यग्रहण के समय ब्रजवासी कुरुक्षेत्र में स्‍नान के ल‌िए आए थे। तभी श्रीराधा और कृष्‍ण का मिलन हुआ। यहां स्थापित तमाल वृक्ष इस बात का गवाह है।

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