हिन्दू मंदिर जो परिवर्तित हो गया बौद्ध मन्दिर में देखें तस्वीरें

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2015 01:36 PM

article

पौराणिक काल का कम्बोज देश कल का कम्पूचिया और आज का कम्बोडिया है जहां सदियों के कालखण्ड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिन्दू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह...

पौराणिक काल का कम्बोज देश कल का कम्पूचिया और आज का कम्बोडिया है जहां सदियों के कालखण्ड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिन्दू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं ही, लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो। कम्बोडिया देश की मीकांग नदी के किनारे सिमरिप
शहर में स्थित विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर अन्कोर पार्क है, जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। इस परिसर के अन्दर स्थित विष्णु मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर अन्कोरवाट है। कम्बोडिया के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कम्बोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। 
 
विश्व के लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहां केवल मंदिर की संरचना का अनुपम सौन्दर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। विश्व विरासत में शामिल अन्कोर पार्क मंदिर-समूह को अन्कोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चैदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव
बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरुप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रान्सिसी पुरातत्त्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मन्दिर जिस रुप में है, उसमें भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहां संरक्षण का काम किया था। 
 
अन्कोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियां कहती हैं क्योंकि सीता हरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अन्कोर वाट के आसपास कई प्राचीन मन्दिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अन्कोर पार्क कहा जाता है। अतीत की इस अनूठी विरासत को देखने हर साल दुनिया भर से दस लाख से ज्यादा लोग आते हैं।
 
अन्कोरवाट मंदिर का वास्तु विश्लेषण करने पर यह तो तय है कि इस मंदिर का निर्माण वास्तु के सिद्धातों के अनुसार तो नहीं किया गया परंतु लगभग 900 वर्ष पूर्व उस समय के विद्वानों ने जिस प्रकार से इसकी प्लाॅनिंग की वह सहज भाव से बहुत कुछ वास्तुनुकूल हो गया परंतु कुछ वास्तुदोष रहे जिस कारण यह मंदिर कुछ सदियों तक लुप्त रहा। प्रारम्भ में यह हिन्दू मंदिर था, बाद में बौद्ध मंदिर में परिवर्तित हो गया। आईए अन्कोरवाट मंदिर का वास्तु विश्लेषण करके इसका कारण जानते हैं।
 
अन्कोर पार्क के अन्दर स्थित अन्कोरवाट विष्णु मंदिर की रक्षा एक चतुर्दिक खाई करती है, जिसकी चैड़ाई लगभग 700 फीट है जो कि बहुत चैड़ी है। मंदिर के चारों ओर स्थित यह खाई दूर से झील के समान दृष्टिगोचर होती है। मंदिर के पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ है। इस पुल पर जाने के लिए सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इस कारण यहां से वाहन नहीं आ-जा सकते। पुल के पार मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार निर्मित है जो लगभग 1000 फुट चौड़ा है। मंदिर में आने के लिए पूर्व दिशा से भी एक रास्ता है। जो खाई को मिट्टी से पाटकर बनाया गया है जिसके ऊपर से वाहन भी अन्दर आते-जाते हैं। पश्चिम दिशा स्थित मुख्य प्रवेशद्वार से लगभग पौन किलोमीटर चलने के बाद मुख्य मंदिर स्थित है। पानी से भरी खाई और मुख्य मंदिर की बाहरी चार दीवारी के बीच चारों ओर खुली जगह है।
 
इस खुले भाग में इतने घने पेड़-पौधे हैं कि जंगल का आभास होता है। पानी से भरी खाई और मंदिर की चार दीवारी के बीच जो खुली जगह है, इसकी उत्तर दिशा अन्य दिशाओं की तुलना में नीची है। अन्कोर वाट मंदिर की उत्तर दिशा में खाई से लगभग एक-डेढ किलोमीटर दूर सिमरिप नदी बह रही है इस कारण मंदिर के बाहर की जमीन का ढ़लान भी उत्तर दिशा की ओर ही है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा की नीचाई प्रसिद्धि दिलाने में सहायक होती है। मन्दिर की चार दीवारी के बाहर खुले भाग की दक्षिण दिशा में एक मठ है। इस मठ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु ही अन्कोरवाट मंदिर में पूजा अर्चना एवं देख-रेख करते हैं और उत्तर दिशा में खाने-पीने और गिफ्ट आईटम के कुछ स्टाल बने हुए हैं। यह तो हुआ अन्कोरवाट मन्दिर की चार दीवार के बाहर का वास्तु विश्लेषण।
 
अन्कोरवाट विष्णु मंदिर एक विशाल ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। चबूतरे के चारों ओर लगभग 3 फीट ऊंची पैराफीट वाल है। इस चबूतरे पर ऊपर चढ़ने के लिए चारों दिशाओं में मध्य में चौड़ी सीढि़यां हैं। इसी के साथ चबूतरे के चारों कोनों की दोनों दिशाओं में कम चौड़ी सीढि़यां बनी हुई हैं। इस प्रकार चबूतरे पर चढ़ने के लिए 4 चौड़ी और 8 कम चौड़ी कुल 12 सीढि़यां बनी हुई हैं। चबूतरा पार करने के बाद
मंदिर की बाहरी कम्पाऊण्ड वाल का निर्माण लगभग 10 फीट चौड़े गलियारे के आकार में किया गया है। यह गलियारा बाहरी चबूतरे से कुछ फीट ऊंचा है। इस गलियारे में प्रवेश करने के लिए भी चबूतरे के समान 4 चौड़े और 8 कम चौड़े प्रवेश द्वार बने हुए हैं। इसके कुछ फीट अंदर जाने पर एक ओर गलियारा आता है। इन दोनों गलियारों के बीच में नैऋत्य कोण एवं वायव्य कोण में मंदिर बने हैं जबकि बाकी दो ईशान कोण और आग्नेय कोण में कोई निर्माण कार्य नहीं है। 
 
दोनों जगह बने यह मंदिर कम्पाऊण्ड वाल और मुख्य मंदिर की दीवार से हटकर बने हैंं। इस प्रकार यह निर्माण पूर्णतः वास्तुनुकूल है इसी के साथ इन दोनों मंदिरों के निर्माण से अन्कोरवाट मंदिर की पश्चिम दिशा भारी होकर वास्तुनुकूल हो गई है। दोनों गलियारों को पार करने के बाद मध्य में स्थित मुख्य मंदिर तक जाने के लिए एक ओर गलियारा पार करना पड़ता है, यह गलियारा पुनः पहले के दोनों गलियारों से भी थोड़ा ऊंचाई लिए हुए है। ठोस जमीन पर स्थित मंदिर जो लगभग 50-60 फीट की ऊंचाई पर है वहां तक जाने के लिए मंदिर तक खड़ी सीढि़यां बनी हैं। इस प्रकार बाहरी खुले भाग के बाद चबूतरें पर चढ़कर ज्यों-ज्यों मन्दिर के अंदर की ओर जाते हैं तो देखने में आता है कि जमीन को ऊंचा करने के साथ-साथ मंदिर का निर्माण भी ऊंचाई लेकर किया गया है। 
 
इस प्रकार अन्कोरवाट मन्दिर के मध्य में स्थित मन्दिर का मुख्य एवं अन्य शिखर मिस्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह सीढ़ी पर उठते गए हैं। इसका मुख्य शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। इन आठों शिखर की सीढि़यां भी मुख्य शिखर की तरह ही खड़ी बनी हैं।
इस प्रकार मंदिर की जमीन कछुएं की पीठ की तरह मध्य में ऊंची और चारों दिशाओं में क्रमशः नीची होती गई है। 
 
वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसी भूमि को कूर्म पृष्ठ भूमि कहते हैं, जिसमें भूमि मध्य में ऊंची तथा चारों ओर नीची होती है। ऐसी भूमि पर भवन बनाकर रहने वालों के घर में हमेशा उत्साह का वातावरण रहता है। उस घर में सुख-समृद्धि का वास रहता है।
इस प्रकार अन्कोरवाट विष्णु मंदिर की भौगोलिक स्थिति और बनावट पूर्णतः वास्तुनुकूल है, किन्तु यहां दो महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष भी हैं जो मंदिर की चार दीवारी के बाहर खुले भाग में हैं। 
 
पहला वास्तुदोष अन्कोरवाट मन्दिर के चबूतरे की पश्चिम दिशा में लगभग 200 मीटर दूरी पर दो बड़े तालाब है। एक पश्चिम वायव्य कोण एवं दूसरा पश्चिम नैऋत्य कोण में बना है। सूर्योदय देखने के लिए पर्यटक प्रातः 5 बजे से वायव्य कोण के तालाब के किनारे आकर बैठने लगते हैं। यह दोनों ही तालाब वास्तु विपरीत स्थान पर बने हैं। इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए इन दोनों तालाबों को मिट्टी डालकर भर देना चाहिए और एक नया बड़े आकार का तालाब केवल ईशान कोण में बनाना चाहिए। जैसा कि भारत स्थित तिरुपति बालाजी मन्दिर, पद्मनाथ स्वामी मन्दिर तिरुअनन्तपुरम् इत्यादि स्थानों पर है।
 
मंदिर में आने के लिए पूर्व दिशा के मध्य में लोगों एवं वाहनों के आने-जाने के लिए खाई को मिट्टी से पाटकर जो रास्ता बनाया गया है यह अन्कोरवाट का दूसरा वास्तुदोष है। इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए इस जगह की मिट्टी खोदकर खाई बना देनी चाहिए ताकि खाई चारों ओर समान रुप में हो जाए। पर्यटकों एवं वाहनों के आने-जाने के लिए खाई के ऊपर पूल बना देना चाहिए। इन दोनों वास्तुदोषों को दूर
करने के जो समाधान बताए हैं उससे इसके पुरातत्त्व स्वरुप में भी कोई अन्तर नहीं आएगा।
 
अन्कोरवाट मंदिर में पर्यटक तो खूब आते हैं, किन्तु उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण पर्यटको में इस मंदिर के प्रति वह आस्था और श्रद्धा नजर नहीं आती जो हमें भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में देखने को मिलती है। यदि इन दोनों वास्तुदोषों को दूर कर दिया जाए तो यह तय है, कि न केवल अन्कोर वाट मंदिर के प्रति लोगों में न केवल आस्था एवं श्रद्धा उत्पन्न होगी बल्कि पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हो जाएगा।
 
वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा

kuldeep@vaastuguru.co.in 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!