भटकती आत्माओं को यहां मिलती है मुक्ती

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2016 04:16 PM

brahma kapal

देवों के देव महादेव जो सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं,एक बार खुद एेसी मुशि्कल में पड़ गए कि उस मुशि्कल से छुटकारा पाने के लिए उन्हें बद्रीनारायण की आराधना करनी पड़ी।

देवों के देव महादेव जो सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं,एक बार खुद एेसी मुशि्कल में पड़ गए कि उस मुशि्कल से छुटकारा पाने के लिए उन्हें बद्रीनारायण की आराधना करनी पड़ी। 

सृष्टि की उत्पति के समय जब तीन देवों में एक ब्रह्मा मां सरस्वती के रुप पर मोहित हो गए तो भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के सिरों में से एक सिर काट दिया। किंतु सृष्टि रचियता ब्रह्मदेव का सिर कटते ही शिव के त्रिशूल से ही चिपक गया। भगवान शिव की अनेक कोशिशों के बाद भी वह सिर त्रिशूल से ही लगा रहा। इससे शिव ब्रह्म दोष से दु:खी होकर बद्री क्षेत्र में आए। यहां शिव ने बद्रीनारायण की आराधना की। जिससे जगत पालक विष्णु प्रसन्न हुए। उनकी कृपा से ब्रह्मदेव का कटा सिर त्रिशूल से निकलकर दूर जा गिरा। भगवान शिव भी ब्रह्मदोष से मुक्त हुए। वह सिर जहां गिरा, वह स्थान ही तीर्थ कहलाया। जो बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित है। मान्यता है कि इससे ब्रह्मदेव के कटे सिर को भी मोक्ष प्राप्त हुआ। तब से ही यह क्षेत्र श्राद्ध कर्म और पितरों के मोक्ष तीर्थ के रुप में  ब्रह्मकपाल प्रसिद्ध है।

 उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में बसा है ब्रह्मकपाल। अलकनंदा नदी ब्रह्मकपाल को पवित्र करती हुई यहां से प्रवाहित होती है। इस स्थान के विषय में मान्यता है कि इस स्थान पर जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर्म होता है उसे प्रेत योनी से तत्काल मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु के परमधाम में उसे स्थान प्राप्त हो जाता है। 

जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है उसकी आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है। ब्रह्म कपाल में अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध करने से आत्मा को तत्काल शांति और प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है। 

ब्रह्म कपाल के विषय में कहा जाता है कि पाण्डवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से ब्रह्म कपाल में जाकर श्राद्ध किया था। 

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