Pix: चारधाम यात्रा के इस स्थान पर जब भी जाएं स्नान जरुर करें, क्योंकि...

Edited By ,Updated: 18 May, 2016 01:49 PM

char dham yatra yamunotri

अक्षय तृतीया पर चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ गंगोत्री, यमुनोत्री की यात्रा शुरु हो गई है। यमुनोत्री तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी तहसील में ॠषिकेश से 251 किमी, उत्तर-पश्चिम

अक्षय तृतीया पर चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ गंगोत्री, यमुनोत्री की यात्रा शुरु हो गई है। यमुनोत्री तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी तहसील में ॠषिकेश से 251 किमी, उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से 131 किमी, पश्चिम-उत्तर में 3185 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यमुनोत्री के मार्ग में आने वाले घुमावदार रास्ते, चीड़ व अन्य प्रजातियों के वृक्ष प्रकृति के नजारों को अोर भी मनमोहक बनाते हैं। ऋषिकेश से यमुनोत्री 248 किलोमीटर और नरेन्द्र नगर से 20 किमी दूर है। नरेन्द्र नगर से चंबा बरकोट पहुंचकर वहां से 56 किमी. की दूरी तय करके धरासु पहुंचते हैं फिर धरासू से गंगोत्री अौर यमुनोत्री के लिए रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं। ये रास्ता सुरक्षित है लेकिन तंग होने के कारण दुर्घटनाअों का डर रहता है क्योंकि एक तरफ भू-स्खलन अौर दूसरी तरफ गहरी खाई है। 

 

 

वहां का मौसम कब बदल जाए इसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बड़गाव से आगे स्याना चट्टी से यमुना के पवित्र व साफ जल को बहते देखा जा सकता है। आगे जानकी चट्टी आती है कुछ लोग इस स्थान को देवी सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है। यहां से आगे पैदल ही जाना पड़ता है। यहां विश्राम का अच्छा प्रबंध होने के कारण यात्री रात को यहीं रुकते हैं। वहां के लोगों के अनुसार यहां से 20 किलोमीटर पहले रुकने के लिए कोई स्थान नहीं है। यहां स्थान न मिलने पर स्याना चट्टी जाना पड़ता  है।

 

यहां से आगे जाने का रास्ता अति दुर्गम है। चढ़ाई के आस-पास घने जंगल मन को मोह लेने वाले हैं। रास्ता कठिन होने पर भी बच्चे, बूढ़े, नौजवान, स्त्री-पुरुष इन पहाड़ों पर बड़ी श्रद्धा से चढ़ते हैं। यात्रियों के लिए कुली, पालकी, टट्टू, कंडी आसानी से उपलब्ध रहते हैं।

 

ऊपर पहुंच कर यमुना का अति पावन रुप देख सारी थकान गायब हो जाती है। दूर से पीले रंग का गुबंद नजर आता है यही जगह यमुनोत्री धाम है। मंदिर के सामने व दूसरी अोर यमुना बह रही है। यमुना के पावन जल में श्रद्धालु स्नान करते हैं। मान्यता है कि अकाल मृत्यु से बचने अौर मोक्ष प्राप्ति के लिए यमुना नदी में स्नान किया जाता है।

 

यहीं गर्म पानी का कुंड है जिसे सूर्य कुंड कहते हैं। यहां अाने वाले श्रद्धालु स्नान करके अपनी थकावट दूर करते हैं। कपड़े में चावल बांध कर इस कुंड़ में डालने से वे कुछ ही मिनटों में पक जाते हैं। इसी कुंड में चावल पकाकर उनका भोग लगाकर श्रद्धालुअों में बांटे जाते हैं। 

 

सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला या दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। श्रद्धालु भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं। इस शिला के पास ही एक गुफानुमा द्वार से जल की धारा बहती है यही यमुना का उद्गम स्थान है। 

 

यमुना मां सर्दियों में दीवाली पर यमुनोत्री धाम में सर्दी व बर्फ गिरने के कारण जानकी पट्टी के पास खरसाली गांव चली जाती हैं अौरअक्षय तृतीया पर लौटती हैं। अक्षय तृतीया पर मां यमुना चांदी की पालकी में सवार होकर खरसाली गांव से आती हैं। माता जी की पालकी के साथ वहां के लोग आते हैं। मंदिर में बहत भीड़ होती है। यमुना माता जी की पालकी आने पर ही मंदिर के कपाट खुलते हैं लेकिन कोई दर्शन नहीं कर सकता। उसके बाद पूजा-अर्चना व आरती होती है फिर मंदिर के कपाट खुलते हैं अौर सारा वातावरण माता के जयकारों से गूंज उठता है।

 

 

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