Edited By ,Updated: 21 Mar, 2016 12:54 PM
ब्रजभूमि की होली दूर-दूर तक मशहूर होने के बावजूद यहां दो गांवों में ऐसी होली होती है जिसे देखकर दर्शक हैरान रह जाते हैं। जिले की छाता तहसील के दो गांवों फालैन और जटवारी अपनी चमत्कारिक होली के कारण मशहूर हैं।
ब्रजभूमि की होली दूर-दूर तक मशहूर होने के बावजूद यहां दो गांवों में ऐसी होली होती है जिसे देखकर दर्शक हैरान रह जाते हैं। जिले की छाता तहसील के दो गांवों फालैन और जटवारी अपनी चमत्कारिक होली के कारण मशहूर हैं। यहां होली की आग से होकर अलग-अलग समय में दो पंडे निकलते हैं। फालेन गांव कोसी से पैगांव होते हुए शेरगढ मार्ग पर है जबकि जटवारी गांव भी इसी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर आगे पड़ता है। दोनों ही गांवों की होली की आग से पंडे के निकलने की परंपरा डेढ शताब्दी से अधिक पुरानी है। दोनों ही गांवों में बसंत पंचमी को पंचायत कर यह निर्धारण किया जाता है कि इस बार होली से होकर कौन निकलेगा जो युवक खुद इस आग से निकलने के लिए कहता है वह मंदिर में रखी माला को उठा लेता है।
इन दोनों ही गांवों में प्रहलाद मंदिर है जहां पर पंडे आराधना करते हैं तथा होली की आग से निकलने के पहले पास के प्रहलाद कुंड में स्नान करने के बाद ही होली की आग से निकलते हैं। इन दोनों गांव के पंडे माला लेने के बाद मंदिर में हर समय पूजा आराधना करते हैं तथा मंदिर में ही फर्श पर सोते हैं। होलाष्टक लगने के बाद दोनों ही गांव के पंडे अन्न का परित्याग कर केवल दूध और फल ही ग्रहण करते हैं। जटवारी गांव के पूर्व प्रधान डारु रामहेत ने आज यहां बताया कि इस गांव में इस बार सुनील पंडा होली की लपटों से होकर निकलेगा। इस गांव में होली जलाने का मुहूर्त गांव की धधकती होली से निकलने वाला पंडा ही निर्धारित करता है।
होली की शाम से वह हवन करने लगता है तथा पास रखे दीपक की लौ पर अपना हाथ रखकर उसकी गर्मी का अंदाजा करता है। जब उसे यह लौ शीतल महसूस होने लगती है तो उसे बहुत अधिक ठंड लगने लगती है। इसी समय वह होली में आग लगाने का निर्देश देकर खुद पास के प्रहलाद कुंड में स्नान के लिए जाता है तथा उसकी बहन उसके होली तक आने के मार्ग पर करुए से पानी डालती है और फिर जलक झपकते ही यह पंडा होली की गगनचुम्बी लपटों से होकर निकल जाता है।