भगवान परशुराम या श्री राम, आखिर किसने शुरू की कांवड़ यात्रा ?

Edited By Jyoti,Updated: 26 Jul, 2019 04:41 PM

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जैसे कि सब जानते हैं सावन का पावन महीना चल रहा है। इस पवित्र माह में भगवान शिव की आराधना के साथ-साथ कांवड़ यात्रा भी बहुत महत्व है।

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जैसे कि सब जानते हैं सावन का पावन महीना चल रहा है। इस पवित्र माह में भगवान शिव की आराधना के साथ-साथ कांवड़ यात्रा भी बहुत महत्व है। बीते दिन हमने आपको अपने आर्टकिल द्वारा कांवड़ से जुड़ी जानकारी दी थी जिसमें हमने आपको बताया कि हिंदू धर्म में होने वाली कांवड़ यात्रा के लिए कांवड़ बनाने वाले हिंदू नहीं बल्कि अधिकतर लोग मुस्लिम समुदाय के हैं। आज भी हम आपके लिए कांवड़ यात्रा से जुड़ी ऐसी ही कहानी लेकर आएं हैं।
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सावन का पूरा महीना सड़कों पर कांवड़ उठाए शिव भक्त को देखा जाता है। बता दें कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर अर्पित करने की परंपरा को ही ‘कांवड़ यात्रा’ कहा जाता है। भक्तों को भगवान से जोड़ने वाली कांवड़ यात्रा महादेव को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने के लिए की जाती है। इसमें सभी कांवड़िए पवित्र नदियों के जल को कावंड़ में भर कर लाते हैं और देश के विभिन्न ज्योतिर्लिंगों का उससे अभिषेक करते हैं। यह ऐसी जानकारी है जिसे हमें शायद आपको बतानी ज़रूरी नहीं है क्योंकि ये आम जानकारी सबको पता है। मगर क्या आप जानते हैं कि आख़िर ये कांवड़ यात्रा  शुरू कैसे हुई थी। किसके द्वारा इसका आरंभ किया गया। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको देते हैं इससे जुड़ी ऐसी पौराणिक कथा जिससे आपको आपके इन सवालों का जवाब मिल जाएगा। 
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पौराणिक कथाओं के अनुसार समुंद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष से असुरओं के साथ-साथ देवतागण भी घबरा गए थे। सब समुंद्र से निकले अमृत को ग्रहण करना चाहता, विष को कोई लेना नहीं चाहता था। तब जटाधारी शिव शंभू ने इन्हें निगलने का मन बना लिया लेकिन जैसे ही उन्होंने इस विष को निगलने के लिए पीया तब उनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। जिस कारण सारा विष शिव जी के कंठ यानि गले में ही अटक गया। कहा जाता है इसी घटना के बाद शिव जो को नीलकंठ कहा जाने लगा था। मगर उस विष से भोलेनाथ के गले में जलन होने लगी जिसे शांत करने के लिए वे हिमालय की ओर भागने लगे। शास्त्रों के अनुसार इसके बाद समस्त देवी-देवताओं ने उनको ठंडक प्रदान करने के लिए उन पर जल अर्पित किया। जिससे उन्हें राहत मिली। मान्ययता है इसी के बाद शिव भक्तों द्वारा उन पर जल चढ़ाने की परंपरा की शुरूआत हुई थी।

कुछ अन्य कथाओं के अनुसार इस कावड़ यात्रा का आंरभ भगवान परशुराम ने किया थ। बताया जाता है सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास मौज़ूद ‘पुरा महादेव’ में गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया था। कहा जाता है जिस समय उन्होंने यह कार्य किया था तब सावन का महीना चल रहा था। एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने भी भगवान शिव को कांवड़िया बनकर जल चढ़ाया था।
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