'प्रेमतली' पर हुई थी ये अद्भुत लीला

Edited By ,Updated: 05 Nov, 2015 03:51 PM

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जब यशोदा-नंदन भगवान श्रीकृष्ण, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के रूप में पृथ्वी पर आए हुए थे। उनके साथ उनके बड़े भाई श्रीनित्यानन्द प्रभु (श्रीबलराम) भी थे।

जब यशोदा-नंदन भगवान श्रीकृष्ण, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के रूप में पृथ्वी पर आए हुए थे। उनके साथ उनके बड़े भाई श्रीनित्यानन्द प्रभु (श्रीबलराम) भी थे।
 
एक बार बंगाल के पास कानाई नाटशाला गांव में आप अपने भक्तों के साथ हरिनाम संकीर्तन कर रहे थे। अचानक आप 'नरोत्त्म' 'नरोत्तम' बोलने लगे। सभी भक्ति हैरानी से सोचने लगे की यह किसका नाम है क्योंकि उनमें से किसी का नाम भी नरोत्तम नहीं था। तब श्रीनित्यानन्द प्रभु जी ने आपसे इस बारे में पूछ ही लिया।
 
जवाब में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी बोले," जब हम नवद्वीप (बंगाल) से पुरी जा रहे थे, उस समय संकीर्तन करते-करते आपके अंदर जो प्रेम उमड़ा था और उस समय जो आपने कृष्ण-प्रेम-भाव में डूब कर जो प्रेमाश्रू बहाए थे। मैंने आपके उस दिव्य प्रेम को  सरंक्षित करके रख लिया था।  वो जो 'प्रेम' है, मैं पद्मा नदी को दूंगा ताकि जब नरोत्तम आए तो वो उसको दे दें।"
 
सर्वशक्तिमान भगवान के लिए सब कुछ सम्भव है। सभी भक्त भगवान की इस अद्भुत लीला को देखने के लिए श्री महाप्रभु जी के साथ-साथ चल दिए। वहां से सब कुतुबपुर गए और वहां पर पद्मा नदी में सबने स्नान किया। कुछ देर श्रीहरिनाम संकीर्तन करने के बाद, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने पद्मा नदी की ओर मुख कर कहा," लो ये प्रेम ले लो, इसे छिपा कर रखना तथा नरोत्तम के आने पर उसको दे देना।"
 
सबके देखते ही देखते, पद्मा नदी देवी के रूप में प्रकट हो गई व भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी को प्रणाम कर बोली,"आपकी आज्ञा शोरिधार्य। मैं अवश्य ही यह प्रेम नरोत्तम को दे दूंगी लेकिन मैं कैसे समझूंगी की नरोत्तम आया है?" 
 
श्री महाप्रभु जी ने कहा, "जिसके स्पर्श से तुम्हारे ऊंची-ऊंची उछाल वाली लहरें उठने लगें, तो समझ लेना कि नरोत्तम आया है।"
 
इतना सुनकर पद्मा नदी देवी, श्री महाप्रभु को प्रणाम कर अदृश्य हो गई। जिस स्थान पर यह लीला (घटना) हुई, वह स्थान 'प्रेमतली' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
 जब श्रीनरोत्तम ठाकुर जी की आयु 12 वर्ष की थी तब श्री नित्यानंद प्रभु जी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए व पद्मा नदी से प्रेम प्राप्त करने के लिए कहा। स्वप्न में आदेश पाकर श्री नरोत्तम ठाकुर एक दिन अकेले ही पद्मा नदी के किनारे गए। आपके स्नान करने से पद्मा नदी में ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगीं। 
 
तब श्री चैतन्य महाप्रभु जी की बात याद कर पद्मा नदी वहां प्रकट हो गई व नरोत्तम ठाकुर को वो प्रेम दे दिया जैसे ही नरोत्तम ठाकुर जी का उस प्रेम से स्पर्श हुआ, आपका रंग रूप सब बदल गया। आप में भगवान श्रीकृष्ण के लिए अद्भुत प्रेम के विकार प्रकट होने लगे। उसके बाद, आप श्रीचैतन्य-श्रीनित्यानन्द जी के प्रेम की मदिरा पान कर, कृष्ण-प्रेम में बहते हुए, वृन्दावन धाम की ओर चल दिए।
 
श्री चैतन्य गौड़ीय मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com 

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