यात्रा: परियों के इस देश को माना जाता है ब्रह्मा की भूमि

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2016 01:08 PM

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थाईलैंड को ब्रह्मा की भूमि माना जाता है। यहां बौद्ध धर्म की सरकारी मान्यता है। हाल के कुछ वर्षों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों को भी,

थाईलैंड को ब्रह्मा की भूमि माना जाता है। यहां बौद्ध धर्म की सरकारी मान्यता है। हाल के कुछ वर्षों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों को भी, इनकी संख्या को देखते हुए मान्यता दी जाने लगी है। बौद्ध धर्म की मान्यता के साथ-साथ यहां हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों का बाहुल्य देखने में आता है।  
 
20 अप्रैल को मैं जब ब्रह्मा की भूमि थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में सुबह 8 बजे पहुंची तो चारों तरफ खिली धूप ने हल्की गर्माहट के साथ मेरा स्वागत किया। राजयोग के अनुभव सांझा करने का यह 15 दिवसीय ईश्वरीय अवसर था। 
 
यहां हर घर, होटल, फैक्टरी आदि के बाहर के खुले स्थान पर ‘स्पीरिट हाऊस’ (छोटा मंदिर) होता है जिसमें अधिकतर चतुर्मुखी ब्रह्मा की मूर्ति होती है और उनके 8 हाथों में चक्र, माला, भाला आदि अलंकार होते हैं। इस देश का राष्ट्रीय जानवर हाथी है। जगह-जगह गणेश जी की मूर्तियां, लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियां या विष्णु चतुर्भुज की मूर्तियां भी देखने को मिलीं।  
 
रामायण का यहां खूब प्रचलन है। गिनीज बुक में दर्ज यहां का सभागार जिसमें ‘श्याम निर्मित’ शो (थाईलैंड का इतिहास-श्याम इसका पुराना नाम है) दिखाया जाता है, का नाम ‘रामायण हाल’  है। दीवारों पर उकेरी मूर्तियों में फरिश्तों, देवताओं तथा रथ पर सवार अर्जुन और श्री कृष्ण की छवि भी होती है। 
 
भारत के पूर्व से लगते देशों के लोगों के नयन-नक्श भारत के पूर्वी लोगों से बिल्कुल मिलते-जुलते हैं। थाई लोग, मणिपुरी, आसामी लोगों की तरह गोल चेहरे वाले और बिना दाढ़ी-मूंछ के होते हैं। खुशमिजाज रहना, नाचना-गाना इनके खून में है। भारतीय मूल के एक थाई निवासी ने बताया कि एक बार यहां बाढ़ का पानी लोगों के घरों में घुस गया पर लोग घरों से बाहर खड़े हंसी-मजाक करते दिखे, कोई भी तनावग्रस्त नहीं दिखा। यहां की करंसी ‘बाट’ है जिसकी कीमत भारत की करंसी से दोगुनी है अर्थात थाईलैंड का 1 रुपया भारत के दो रुपयों के बराबर है। यहां कन्याओं का बहुत मान है इसलिए कन्या भू्रण हत्या जैसी कोई समस्या नहीं है। यहां का अधिकतर व्यापार महिलाएं संभालती हैं। शादी के समय लड़के वालों को लड़की के परिवार वालों को भेंट आदि देनी पड़ती है। 
 
थाईलैंड मुख्यत: कला प्रिय देश है। अनेक प्रकार की कलात्मक मूर्तियों तथा नित्य प्रयोग में लाई जाने वाली हाथ निर्मित कलात्मक चीजों की यहां भरमार देखी। खेती में कैमिकल्स का इतना प्रयोग नहीं होता। इस कारण अमरुद, नारियल, मौसम्बी आदि में प्राकृतिक स्वाद और मिठास अनुभव हुआ।  
 
थाईलैंड को परियों का देश भी कहा जाता है। यहां की प्राचीन राजधानी अयुथैया (अयोध्या) थी और राजाओं के नाम भी रामा प्रथम, रामा द्वितीय आदि रहे हैं। वर्तमान समय रामा नवम्, 85 वर्षीय राजा अतुल्यतेज भूमिबोल गद्दी पर हैं। देश में प्रजातंत्र होते हुए भी राजा की मान्यता बहुत है। लोग इसकी पूजा करते हैं। उसने इस देश के लोगों को बहुत प्यार दिया है और उनके लिए बहुत कुछ किया है। सैंकड़ों प्रकार की समाज सेवा की योजनाएं उनकी निगरानी में चल रही हैं। हर कार्यालय में, व्यापारिक स्थल में राजा-रानी की मूर्ति लगाना अनिवार्य है और उसकी महिला में राष्ट्रीय गान भी हर सार्वजनिक कार्यक्रम से पहले गाया जाता है। कलियुग के समय में जब हर जगह राजसत्ता भ्रष्टाचार से ग्रसित है वहां के लोग अपने राजा को सतयुगी ही मानते हैं। 
  
आजकल वहां के प्रधानमंत्री अपदस्थ हैं और मिलिटरी राज चल रहा है पर जनता को कोई परेशानी नहीं है, जन-जीवन पूरी तरह सामान्य है। यह देश कभी अंग्रेजों के अधीन नहीं हुआ इसलिए बहुत कम पुराने थाई लोगों को अंग्रेजी भाषा आती है। आधुनिक समय में बहुत अंतर्राष्ट्रीय स्कूल खुल गए हैं, टूरिस्ट्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए साइनबोडर्स पर थाई के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा भी लिखी दिखती है। सरकारी- कामकाज थाई भाषा में चलता है। मूल्यों के ऊपर हर थाई स्कूल में एक सब्जैक्ट अवश्य होता है। 
 
ब्रह्मा के इस देश में ब्रह्माकुमार-कुमारियों की काफी संख्या है। थाई भाषी भाई-बहनों के अलग सेवाकेंद्र हैं और हिन्दी भाषी भाई-बहनों के लिए अलग व्यवस्था है। सभी भाई-बहनों में राज योग की गहराई जानने और अनुभव करने की गहन उत्सुकता देखी। अमृत वेले के राज योग के लिए डेढ़ घंटे तक भी गाड़ी चलाकर कई भाई-बहनें उपस्थित रहे। सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी हिन्दी भाषियों की उपस्थिति और रुचि देखते ही बनती थी। भारत से दूर आकर भारत के मूल आध्यात्मिक ज्ञान की बातें उन्हें ज्यादा दिल में उतरती महसूस होती हैं। 
 
इन सबके बीच एक मुस्लिम युगल परकीत भाई तथा बीबी बहन ने बैंकॉक में जो मिनी मधुबन बनाया है वह देखने योग्य है। मधुबन के चारों धामों की हू-ब-हू लगने वाली कापी उन्होंने अपनी पैतृक भूमि पर बनाई है जो काफी सराहनीय है। हर आने वाले का वे जिस मुस्कान और हार्दिक स्नेह से स्वागत करते हैं वह अवर्णनीय है। एक घंटे की मुलाकात के दौरान बाप-दादा, मधुबन, मुरली और दैवी परिवार के प्रति उनके उमड़ते स्नेह को देख हम गद्गद्  हो उठे। 

—ब्रह्माकुमारी उर्मिला  

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