Edited By Sonia Goswami,Updated: 12 Sep, 2018 04:35 PM
मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें कहा गया था कि सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने के लिए हर वर्ष अल्पसंख्यक समुदाय के 50 प्रतिशत या इससे अधिक छात्रों को प्रवेश देना होगा।
चेन्नईः मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें कहा गया था कि सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने के लिए हर वर्ष अल्पसंख्यक समुदाय के 50 प्रतिशत या इससे अधिक छात्रों को प्रवेश देना होगा।
न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर ने पांच अप्रैल 2018 को जारी सरकारी आदेश को रद्द करने की मांग वाली ‘इंस्टीच्यूट आफ फ्रांसिस्कान मिशनरीज ऑफ मैरी’ और इसकी अध्यक्ष रेव एस.आर. श्रीयापुष्पम की याचिका मंगलवार को विचारार्थ स्वीकार करते हुए सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगाई। इसके बाद न्यायाधीश ने आगे की सुनवाई के लिए मामले को दो सप्ताह बाद के लिए रख दिया। उच्चतम न्यायालय के एक निर्देश का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि स्कूली शिक्षा स्तर पर गैर वित्तपोषित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का नियमन राज्य सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता जबकि वह वित्तपोषित अल्पसंख्यक संस्थानों में गैर-अल्पसंख्यक छात्रों के प्रवेश के लिए उनके प्रतिशत को अधिसूचित कर सकती है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि अल्पसंख्यक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा तब मिलता है जब इसे अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित एवं संचालित किया जाता है, इस दर्जे का कितनी संख्या में अल्पसंख्यक छात्रों को दाखिला दिया गया उससे कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर अल्पसंख्यक दर्जे को अल्पसंख्यक छात्रों के प्रवेश के अनुपात से जोड़ा जाता है तो दर्जा हर साल बदलता रहेगा।