अमृता प्रीतम जयंती: प्रेम कहानियां लिखने वाली अमृता प्रीतम की खुद की लव स्टोरी भी है अमर

Edited By Riya bawa,Updated: 31 Aug, 2019 03:07 PM

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अमृता प्रीतम प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार ...

नई दिल्ली: अमृता प्रीतम प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं, जो 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री थीं। बता दें कि आज उनकी 100वीं जयंती है। उनका जन्म 31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था, उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने एक बहुत ही प्यारा सा डूडल उन्हें समर्पित किया है। 

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मुहब्बत की दुनिया में आज भी अमृता प्रीतम का नाम अमर है। प्यार में डूबी अमृता की कलम से उतरे शब्द ऐसे हैं जैसे चांदनी को अपनी हथेलियों के बीच बांध लेना। समाज की तमाम बेडियों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेने वालीं, आजाद ख्यालों वालीं अमृता प्रीतम पंजाब की पहली कवियत्री थी।

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बचपन से था कविताएं लिखने का शौक
अमृता प्रीतम अपने समय की मशहूर लेखिकाओं में से एक थीं। उनका ज्यादातर समय लाहौर में बीता और वहीं पढ़ाई भी हुई। किशोरावस्था से ही अमृता को कहानी, कविता और निबंध लिखने का शौक था। जब वह 16 साल की थीं तब उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ। 100 से ज्यादा किताबें लिख चुकीं अमृता को पंजाबी भाषा की पहली कवियित्री माना जाता है।

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साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मविभूषण 
अमृता प्रीतम को देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण मिला था। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया था। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया। अमृता की आत्मकथा 'रसीदी टिकट' बेहद चर्चित है, उनकी किताबों का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। 

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शादीशुदा जीवन और साहिर और इमरोज़ से जुड़े किस्से

---अमृता उस जमाने में लिव-इन में रहीं, जब ऐसा सोचना भी किसी क्रांति से कम न था। अमृता की शादी 16 साल की उम्र में प्रीतम सिंह से हो गई थी। अमृता बेहद भावुक थीं, लेकिन उतनी ही खूबसूरती के साथ उन्हें अपनी भावनाओं और रिश्तों के बीच सामंजस्य बिठाना आता था। अमृता के बच्चे भी हुए। 

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--अंतत साहिर की मुहब्बत के कारण शादीशुदा जीवन से बाहर निकलने का फैसला लिया पर साहिर का साथ भी बहुत न चला। जीवन के आखिरी समय में सच्चा प्यार उन्हें इमरोज के रूप में मिला।

इमरोज़

---अमृता को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी। साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे। साहिर चेन स्मोकर थे। साहिर के होंठों के निशान को महसूस करने के लिए अमृता उन सिगरटों की बटो को होंठ से लगा उसे दोबारा पीने की कोशिश करती थीं। साहिर बाद में लाहौर से मुंबई चले आये। साहिर के जीवन में गायिका सुधा मल्होत्रा भी आ गई थीं, लेकिन अमृता का प्यार आखिरी वक्त तक बना रहा था।

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"1959 में पाकिस्तान में एक फ़िल्म आई थी 'करतार सिंह' जिसमें ज़ुबैदा ख़ानम और इनायत हुसैन भट्टी ने एक गीत गाया है - अज्ज आखां वारिस शाह नूँ कितों कबरां विच्चों बोल- वारिस शाह आज तुझसे मुख़ातिब हूँ, उठो कब्र में से बोलो। "

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अमृता प्रीतम की कुछ कविताएं 
1.एक मुलाकात
2.एक घटना
3. खाली जगह
4. पहचान
5.  कुफ़्र
6.  अज्ज आखां वारिस शाहू नूँ' 

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अमृता प्रीतम का जीवन कई दुखों और सुखों से भरा रहा। उदासियों में घिरकर भी वो अपने शब्दों से उम्मीद दिलाती हैं जब वो लिखती हैं-
दुखांत यह नहीं होता कि ज़िंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे। 
दुखांत यह होता है कि आप लहू-लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे। 

अमृता प्रीतम का जीवन

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