‘कंप्यूटर मानव से नौकरी का स्वरूप बदल सकता है, पर व्यापक बेरोजगारी का खतरा नहीं दिखता’

Edited By pooja,Updated: 06 Sep, 2018 04:27 PM

computer can change job from human

संयुक्त राष्ट्र: कंप्यूटरीकृत मेधा जैसी अग्रणी प्रौद्यिगिकियों के आने से दुनिया में यह डर पैदा हुआ है कि कहीं मजदूरों की जगह रोबोट (यंत्र-मानव या कंप्यूटर मानव) न ले लें।

संयुक्त राष्ट्र: कंप्यूटरीकृत मेधा जैसी अग्रणी प्रौद्यिगिकियों के आने से दुनिया में यह डर पैदा हुआ है कि कहीं मजदूरों की जगह रोबोट (यंत्र-मानव या कंप्यूटर मानव) न ले लें। पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का मानना है कि नयी प्रौद्योगिकी से व्यापक बेरोजगारी जैसी समस्या पैदा होने की संभावना नहीं है क्योंकि मनुष्य अपनी रचनात्मक क्षमताओं के चलते वह अब भी इन चीजों से आगे हैं। साथ ही संयुक्त राष्ट्र का यह भी कहना है कि तकनीक से लोगों को जोडऩा होगा ताकि लोग उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें। इसके लिए नीतियों की जरुरत है क्योंकि तकनीकी प्रगति का बहाना बनाकर नीतियों के स्तर पर हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठा जा सकता। संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन (आईएलओ) वृहद आॢथक नीति एवं रोजगार प्रभाग के प्रमुख एक्कहार्ड अर्नस्ट का कहना है कि विनिर्माण क्षेत्र को कंप्यूटरीकृत मेधा से लाभ नहीं होगा। ऐसे में, कम से कम विकासशील देशों में तो इसके चलते रोजगार के अवसरों का सफाया होने के अनुमान सही नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि कंप्यूटरीकृत मेधा का असर निर्माण कार्य, स्वास्थ्य सेवा और कारोबार पर पड़ेगा और इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रभावित हो सकते है।   अर्नस्ट ने कहा, ‘‘मामला नौकरी के अवसर खत्म होने से ज्यादा काम के स्वरूप में बदलाव का है। इन क्षेत्रों के कर्मचारियों के नाम के आगे नए तरह के काम जुड़ेंगे जिसमें उनकी मदद के लिए कंप्यूटर और रोबोट लगे होंगे।’ उन्होंने कहा कि कंप्यूरीकृत मेधा के एल्गॉरिदम से उन कामों में मशीन का इस्तेमाल हो सकता है जो निरंतर एक ढर्रे पर चलते हैं। मन्युष्य ऐसे कामों की जगह पारस्परिक संपर्क, सामाजिक और भावनात्मक कौशल से जुड़े क्षेत्रों पर ध्यान देगा।   

 आईएलओ के विषेषज्ञ ने यह भी कहा है कि कंप्यूटर आधारित यांत्रिक मेधा से विकासशील देशों को भी लाभ होगा और वहां यह लाभ कृषि जैसे क्षेत्रों में अधिक होगा। उनका कहना है कि उनके किसान अब यंत्रों के माध्यम से मौसम के अनुमान और बाजार की कीमतों की ताजा से ताजा जानकारी हासिल कर रहे हैं। अफ्रीका महाद्वीप में सहारा मरुस्थल के दक्षिण के देशों के किसान मोबाइल एप के माध्यम से फसलों पर लगे कीटों की पहचान की पहचान कर सकते है। उन्हें संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की मदद से विकसित किया गया है।   अर्नेस्ट का कहना है कि जरूरत लोगों को डिजिटल/ कंप्यूटर प्रौद्यगिकी से जोडऩे की है ताकि उनको ऐसा न लगे कि वे मशीन को चला ही नहीं सकते, उसके साथ निर्देश के आदन-प्रदान नहीं कर सकते। वे मशीन को उसी तरह से इस्तेमाल कर सकें जैसे वह कोई सामान्य औजार हो, जैसे कोई कुल्हाड़ी या कार का इस्तेमाल करता है। उन्होंने कहा कि ‘तकनीक के क्षेत्र में प्रगति का बहाना बना कर नीतिगत क्षेत्र में हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठे रहा जा सकता है। जरूरत है कि (तकनीक के जरिए) अच्छे समाधान के लिए पहल की जाए।’   संयुक्त राष्ट्र आॢथक एवं सामाजिक कार्य विभाग के एक ताजा अध्ययन के अनुसार कंप्यूटरीकृत मेधा का श्रम बाजार तथा विषमताओं पर ‘बड़ा असर’ पड़ेगा। लेकिन इस अध्ययन में कहा गया है कि यह नहीं कहा जा सकता कि यह असर ठीक इसी तरह से होगा और इसे स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नीतियां के माध्यम से आकार दिया जा सकता है।   

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