समाज की सोच बदलने वाली दीक्षा का अब तक का सफर

Edited By pooja,Updated: 10 Jan, 2019 01:37 PM

diksha journey transforms of the society

शास्त्रों के अनुसार दीक्षा नाम का अर्थ होता है ईश्वरीय प्रसाद देने की योग्यता रखना एवं गुरू के पास रहकर सीखी गई शिक्षा का समापन। इन्हीं अर्थों को साकार करती हुई अम्बाला

हरियाणा(रीटा शर्मा):  शास्त्रों के अनुसार दीक्षा नाम का अर्थ होता है ईश्वरीय प्रसाद देने की योग्यता रखना एवं गुरू के पास रहकर सीखी गई शिक्षा का समापन। इन्हीं अर्थों को साकार करती हुई अम्बाला के धार्मिक परिवार में 19 नवंबर को जन्मी विलक्षण प्रतिभाओं की धनी दीक्षा के गुण बचपन में ही नजर आने लगे थे।

 पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहते हुए पेंटिंग की रूचि रखते हुए हर कन्याओं की रूचि व श्रृंगार कहे जाने वाले, देवताओं की शैली शास्त्रीय नृत्य कत्थक को अपना लिया। नृत्य की शुरुआत दीक्षा की मासी रितु अरोड़ा द्वारा की गई जोकि स्कूल में अध्यापिका है। उन्होंने ऐश्वर्या राय पर फिल्माए गीत कजरारे पर दीक्षा को डांस सिखाया जिसके चलते बाल भवन में आयोजित एक नृत्य प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के उपरांत कत्थक गुरु अंजु मिगलानी से सम्पर्क हुआ व उन्होंने दीक्षा में छुपे हुनर को पहचानते हुए दुनिया के सामने ला दिया। उद्योगपति व समाज सेवी पिता राकेश कुमार मक्कड़ के संस्कारों की खनक से दीक्षा ने 2010 में शहर के चमन वाटिका स्कूल में अम्बाला के इतिहास के पहले चैरिटी शो के आयोजन के जरिए लगभग 1लाख रुपये की राशि एकत्रित कर दिव्यांग बच्चों, कैंसर पीड़ितों, चैरिटेबल डिस्पैंसरी व जिला बाल कल्याण परिषद् के जरूरतमंद बच्चों हेतु दे दी। इसी शो में मात्र 11 वर्ष की आयु में दीक्षा ने 19मिनट का लाईव कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर सभी को स्तब्ध कर दिया।

 

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हमारे समाज में संकुचित सोच के चलते नृत्य को  अच्छी दृष्टि व सोच से नहीं लिया जाता था परन्तु परिवार के समर्थन व दृढ़ सोच के साथ दीक्षा की इस सोच ने समाज के नजरिए को बदल कर रख दिया। जहां पिता की  समाज सेवा की रूचि वहीं माता शिखा की संगीत में रूचि (वाद्य संगीत में स्नातक) वाले गुण बेटी में दिखने स्वाभाविक थे। दीक्षा के बड़े भाई विनीश कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के आखिरी वर्ष में हैं व अपनी पहली नौकरी हेतु जापान जा रहे हैं। 

10वीं की पढ़ाई के दौरान जिला खेल विभाग की ओर से 90 के करीब लड़कियों को नृत्य सिखाने का अवसर मिला जिसे पूरी तरह से साकार करते हुए कार्यशाला के 10वें दिन उन लड़कियों द्वारा समारोह में सीखे गए नृत्य की प्रस्तुतियों ने दीक्षा के हुनर को एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया।


प्रतियोगिताओं में अकसर अव्वल रहते हुए छोटी सी आयु में 100 से अधिक पुरस्कार हासिल कर लिए व  राज्य पुरस्कार से भी नवाजी जा चुकी हैं।  12वीं कक्षा में साईंस विषय लेकर जहां 89 प्रतिशत अंक हासिल किए वहीं उसी वर्ष प्रयाग विश्वविद्यालय से कत्थक विषय में 6वर्षीय प्रभाकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली।

अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के साथ ही अपने मन में देश सेवा के सपने को संजोए सिविल सर्विसेज का लक्ष्य लिए बीए आनर्स पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सोश्योलोजी व कत्थक नृत्य विषय के साथ पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में दाखिला ले लिया व साथ में एनएसएस से जुड़ गई। 

माता पिता के अनुसार दीक्षा 10वीं कक्षा से ही अपनी सारी पढ़ाई का खर्च खुद ही वहन कर रही है। वह अपनी नियमित पढ़ाई व अभ्यास के साथ ही लड़कियों को नृत्य शिक्षा का हुनर बांट रही है। वे अपनी बेटी पर नाज करते हैं व कहते हैं कि प्रभु ऐसी बेटी हर किसी को दें। दीक्षा से पूछे जाने पर उसने बताया कि उनकी  सफलताओं के पीछे गुरू अंजु मिगलानी, माता पिता भाई ,दादा दादी, परिवार व बाबा जी का हाथ है।
 

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