Edited By Sonia Goswami,Updated: 27 Jul, 2018 01:09 PM
शिक्षा की बुनियादी व्यवस्था बड़े नाजुक दौर से गुजर रही है। सरकारी विद्यालयों और निजी स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था का बढ़ता अंतर परिजनों को निजी व्यवस्था की ओर ले जा रहा है।
शिक्षा की बुनियादी व्यवस्था बड़े नाजुक दौर से गुजर रही है। सरकारी विद्यालयों और निजी स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था का बढ़ता अंतर परिजनों को निजी व्यवस्था की ओर ले जा रहा है। सरकारी व्यवस्था में जहां एक ओर प्राइमरी, जूनियर और माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बनाए रखने की कवायद चल रही है वहीं पब्लिक स्कूलों में शिक्षा व्यवसाय और अंकों की दौड़ बढ़ती जा रही है। इसके बीच भी हमारे आस-पास कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने शिक्षा की महत्ता को व्यवसायीकरण के जाल से बचाए रखने की पुरजोर कोशिश जारी रखी है। अपने अनुभव से शिक्षण व्यवस्था की बुनियाद, परंपरा को साथ रखते हुए आधुनिक जरूरतों को आत्मसात कर आगे बढ़ रहे हैं या आगे बढ़ा रहे हैं।
हरमोहन (एचएम) राऊत ऐसी ही शख्सियत हैं, जो शिक्षा को ही समर्पित हैं। कैंट स्थित दीवान पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य के तौर पर 21 वर्षों से सेवा प्रदान करते हुए उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान दिया कि बच्चों पर बस्ते का बोझ नहीं बढ़ाएं बल्कि अधिकाधिक ज्ञान से उन्हें सींचे। कुल 45 साल से अधिक समय तक शिक्षा से जुड़े रहने के दौरान उन्होंने शिक्षा की अलग-अलग व्यवस्था को बेहद करीब से देखा, समझा और अपने अनुभव में शामिल किया।
सीनियर कैंब्रिज (अब आइसीएसई) व्यवस्था के तहत 10 सालों तक बहरीन में रहे। यहां आईसीएसई के साथ ही विभिन्न देशों की शिक्षण पद्धति के अंतर्गत संचालित स्कूलों की पद्धतियों को भी समझा। देश लौटने पर सीबीएसई से जुड़े। प्रधानाचार्य के तौर पर कार्यरत रहने के साथ ही लंबे समय तक सीबीएसई के सिटी को-आर्डिनेटर के तौर पर सेवाएं दीं।
'मिनिमम टेक्स्ट बुक, मैक्सिमम लर्निंग आउटकम टू किड्स' के सिद्धांत पर चलते हुए एचएम राऊत ने बच्चों के लिए करिकुलम वर्कलोड अब तक कम रखा है। प्रधानाचार्य पद पर रहने के बावजूद बच्चों और शिक्षकों से लगातार जुड़े रहते हुए उन्होंने टीम बिल्डिंग को प्रमुखता दी। बच्चों की किताबी पढ़ाई के साथ रचनात्मकता पर जोर देना उनका मंत्र है।