विदेश जाकर नहीं टूटा मोह,छात्रों के लिए कायम की मिसाल

Edited By Sonia Goswami,Updated: 26 Jun, 2018 02:35 PM

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उन्होंने भले ही एक बड़ी संपत्ति खड़ी कर ली हो और ''ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमंस'' के एक सदस्य बन चुके हों, लेकिन जहां तक मातृभूमि से प्यार करने की बात है

नई दिल्‍ली : उन्होंने भले ही एक बड़ी संपत्ति खड़ी कर ली हो और 'ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमंस' के एक सदस्य बन चुके हों, लेकिन जहां तक मातृभूमि से प्यार करने की बात है, तो वह अपनी जड़ों से गहरे तक जुड़े व्यक्ति हैं। जी हां, ब्रिटेन के टॉप व्यवसायियों में से एक 'लॉर्ड' दिलजीत राणा ने कृषि प्रधान राज्य पंजाब के दूर-दराज के गांवों के स्‍टूडेंट्स को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए पंजाब के ग्रामीण इलाकों में कई शिक्षण संस्थान खोले हैं।

 

चंडीगढ़ से लगभग 40 किलोमीटर दूर संघोल गांव में हड़प्पा खुदाई स्थल के दाहिनी तरफ स्थित 'द कोर्डिया एजुकेशन कॉम्प्लेक्स' को राणा ने राज्य के पिछड़े और ग्रामीण इलाकों तक बेहतर शिक्षा पहुंचाने के मकसद से खोला है। यह जगह फतेहगढ़ साहिब जिले में आती है।

 

राणा ने कहा, 'मैंने पंजाब के ग्रामीण इलाके में अच्छी शिक्षा पहुंचाने का निश्चय किया था, क्योंकि गांवों के ज्‍यादातर बच्‍चों के पास गांव छोड़ने और उच्च शिक्षा पाने के साधन नहीं थे। हमारा पहला कॉलेज 2005 में शुरू हुआ। हमारे अब छह कॉलेज हैं, जिनमें ग्रेजुएशन और पोस्‍ट ग्रेजुएशन कोर्सेज चलते हैं।' लॉर्ड राणा एजु-सिटी 27 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसमें बिजनेस मैनेजमेंट, हॉस्पिटलिटी और टूरिज्‍म मैनेजमेंट, कृषि, शिक्षा, प्रोफेशनल एजुकेशन और कौशल विकास के कोर्सेज मौजूद हैं।

 

राणा के मुताबिक, 'मेरी मां ज्वाला देवी का जन्मस्थान होने के कारण संघोल को मैंने शिक्षण संस्थान स्थापित करने के लिए चुना। परियोजना में प्रतिबद्धता, समय और धन का निवेश हुआ है। यहां आने वाले ज्यादातर स्‍टूडेट ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों से होते हैं, जिसके कारण उन्हें पढ़ाना एक चुनौती है।'

 
गौरतलब है कि पंजाब मूल के राणा 1955 में इंग्लैंड चले गए थे और तब उनका वहां बसने का कोई मन नहीं था। उत्तरी आयरलैंड में कुछ समय बिताने के बाद रेस्‍टोरेंट, होटल और दूसरे कारोबार के जरिए छह करोड़ पाऊंड का साम्राज्य खड़ा करने में उन्होंने काफी कड़ी मेहनत की। ग्रामीण पंजाब में शिक्षा जैसी परोपकारी पहल करने वाले राणा को दुख है कि उन्हें भी दफ्तरशाही और नौकरशाही से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

 

राणा कहते हैं कि विश्वविद्यालय परिसर स्थापित करने के लिए न्यूनतम 35 एकड़ भूमि की अनिवार्यता आड़े आ रही थी। उन्होंने कहा, 'यहां कानून पुराने हैं। दुनियाभर में कई विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में इससे भी कम जमीन है। यहां नियमों में बदलाव किए जाने की जरूरत है।' उन्होंने कहा, 'अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्‍टूडेंट्स को स्‍कॉलरशिप देने के लिए दो करोड़ रुपए जिनका भार राज्य सरकार को उठाना है, लगभग अढाई सालों से अटके हैं, जिससे हमें आर्थिक समस्या हो रही है।' उन्होंने कहा, 'ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बेहतर टीचर ढूढ़ना भी एक मुश्किल काम है। परियोजना की प्रगति देखने के लिए मैं तीन-चार महीनों में भारत का दौरा करता हूं।'
 

 

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