साहसी छात्रः स्कूल जाने को रोज लांघ रहे मुसीबतों का पहाड़

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Jul, 2018 01:44 PM

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यह अफ्रीका के किसी सुदूर पिछड़े गांव का नहीं, आज के भारत का नजारा है।

कांकेरः यह अफ्रीका के किसी सुदूर पिछड़े गांव का नहीं, आज के भारत का नजारा है। स्कूल जाने के लिए बच्चों को पूरा पहाड़ लांघना पड़ता है। दो किलोमीटर लंबा पहाड़ी रास्ता घने जंगलों से घिरा हुआ है। भालू, तेंदुआ, सांप, बिच्छू से भरा है। बच्चे एक के पीछे एक लाइन बना आगे बढ़ते हैं। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित मुरनार गांव में यह नजारा हर रोज का है। तमाम नकारात्मक बातों के बीच अच्छी बात यह है कि ये बच्चे नियमित रूप से स्कूल जाते हैं। आना-जाना मिलाकर रोजाना चार किलोमीटर। 

 

इस गांव के लिए प्रधानमंत्री योजना से सड़क स्वीकृत है, लेकिन निर्माण का अता-पता नहीं है। इसके चलते बच्चों को रोज जोखिम उठाना पड़ता है। दरअसल, यहां के प्रसिद्ध केशकाल घाट से लगे गांव होनहेड़, खालेमुरवेंड, मुरनार व दादरगढ़ के 22 बच्चे पहाड़ के उस पार स्थित ग्राम उपरमुरवेंड हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते हैं। कक्षा छह से लेकर बारह तक के इन बच्चों में 12 छात्रएं भी हैं। गांव के आसपास यह एकमात्र हायर सेकेंडरी स्कूल है। 

 

स्कूल के प्रधानाचार्य अजय शर्मा के अनुसार, मौसम कैसा भी हो, बच्चों की उपस्थिति सौ फीसद रहती है, जो शिक्षकों को भी प्रेरित करती है। 1ग्रामीण रतनलाल व बनकूराम बताते हैं कि यह पूरा इलाका दरअसल घनघोर जंगल है। इसके चलते यहां अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती हैं। पहाड़ पर खतरा होने के कारण प्रतिदिन एक अभिभावक इन बच्चों के साथ जाता है। 

 

छात्र सुशीला, रहेश्वरी, रजुला, संतेश्वरी आदि बताती हैं कि सभी बच्चे पहले पहाड़ के नीचे एक स्थान पर इकठ्ठा होते हैं। जब सभी लोग जुट जाते हैं तब सफर शुरू होता है। बड़े बच्चे आगे और पीछे जबकि छोटे बच्चे बीच में रहते हैं। कोंडागांव के कलेक्टर नीलकंठ टेकाम का कहना है कि यहां प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क प्रस्तावित है। यकीनन ये सभी 22 बहादुर व समर्पित बच्चे तारीफ के काबिल हैं। 

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