सर्वे में हैरानीजनक खुलासा: ट्यूशन पढ़ने में अव्वल भारतीय छात्र, पानी की तरह बहा रहे पैसा

Edited By Sonia Goswami,Updated: 29 Nov, 2018 08:58 AM

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आज के समय में हर अभिभावक चाहता है कि उसका बच्चा नामी स्कूल में पढ़े। बच्चे को पसंदीदा स्कूल में एडमिशन करवाने के बाद भी अभिभावकों की संतुष्टि नहीं होती और वे बच्चे की ट्यूशन को भी अधिक तरजीह देकर बचपन से ही ट्यूशनों पर पानी की तरह पैसा बहाते हैं। यह...

लुधियाना (विक्की): आज के समय में हर अभिभावक चाहता है कि उसका बच्चा नामी स्कूल में पढ़े। बच्चे को पसंदीदा स्कूल में एडमिशन करवाने के बाद भी अभिभावकों की संतुष्टि नहीं होती और वे बच्चे की ट्यूशन को भी अधिक तरजीह देकर बचपन से ही ट्यूशनों पर पानी की तरह पैसा बहाते हैं। यह बात सामने आई है हाल ही में ग्लोबल एजुकेशन द्वारा करवाए गए एक 
ताजा सर्वे में। 


सर्वे में बताया गया कि 74 प्रतिशत भारतीय स्टूडैंट्स स्कूली शिक्षा के साथ ट्यूशन पढ़ने में भी पहले नंबर पर हैं। सबसे हैरानीजनक बात तो यह है कि बच्चों पर ट्यूशन पढऩे का दबाव अभिभावक ही बनाते हैं क्योंकि पेरैंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे के अंक अन्यों की अपेक्षा सर्वाधिक हों। 66 प्रतिशत पेरैंट्स ऐसे हैं जो अपने बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजते हैं। हालांकि सर्वे की इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर चाइना के विद्यार्थी आते हैं। सर्वे में अमेरिका, पाकिस्तान, साऊथ अफ्रीका, चाइना, अर्जेटीना, मलेशिया समेत कुल 10 देशों के विद्यार्थियों, अध्यापकों व अभिभावकों को शामिल किया गया। 

 

84.7 प्रतिशत बच्चों का इंट्रस्ट इंगलिश में 
भाषा की बात करें तो इंगलिश भारतीय विद्यार्थियों की पसंदीदा भाषा है, यानी भारतीय स्टूडैंट्स इंगलिश में बात करना अधिक सही मानते हैं। 84.7 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो इंगलिश पढ़नापसंद करते हैं, जबकि 78 प्रतिशत स्टूडैंट्स को गणित, 73.1 प्रतिशत बच्चे फिजिक्स, 71.8 प्रतिशत विद्यार्थी कैमिस्ट्री एवं 47.8 प्रतिशत विद्यार्थी कंप्यूटर साइंस में इंट्रस्ट लेते हैं। 
छात्रों के बेहतर भविष्य हेतु प्रतिबद्ध हैं भारतीय टीचर्स

 

सर्वे में बताया गया है कि 74 प्रतिशत भारतीय स्टूडैंट्स स्कूल की पढ़ाई के अलावा ट्यूशन पर भी निर्भर रहते हैं। अधिकतर विद्यार्थी खास तौर से गणित के विषय की ट्यूशन पर केंद्रित हैं। सर्वे में यह जानने की कोशिश की गई है कि टीचर अपने विद्यार्थियों से किस हद तक जुड़े हैं। इसमें बताया गया है कि विश्व में सबसे ज्यादा भारतीय टीचर्स छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। स्कूल जाने वाले 72 प्रतिशत बच्चे एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में भाग लेना पसंद करते हैं लेकिन खेलों की तरफ उनका रुझान कम है। 

 

भारतीय घरों में बच्चों की शिक्षा का मजबूत आधार
अब बात पेरैंट्स की करें तो पेरैंट्स अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने के लिए सबसे आगे हैं। 66 प्रतिशत भारतीय पेरैंट्स अपने बच्चों से हमेशा उनकी पढ़ाई और एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज़ को लेकर चर्चा करते रहते हैं। भारतीय घरों में अन्य देशों की तुलना में बच्चों को शिक्षा के लिए मजबूत आधार प्रदान किया जाता है। सर्वेक्षण में भारत के करीब 4400 टीचर्स और 3800 छात्रों को शामिल किया गया है। भारत में करियर के पारंपरिक ऑप्शंस में मैडिसिन और इंजीनियरिंग सबसे अधिक पसंदीदा अब भी बने हुए हैं। भारतीय छात्र स्कूल के अलावा एक्स्ट्रा क्लासेज लेने को तरजीह देते हैं जोकि विश्व में सबसे अधिक है। 

 

हफ्ते में सिर्फ 1 घंटा खेलते हैं 36.7 भारतीय छात्र
भले ही 72 प्रतिशत भारतीय छात्र एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज करना पसंद करते हैं मगर उनमें 3 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं जो हफ्ते में 6 घंटे से अधिक खेल पाते हैं। 36.7 प्रतिशत बच्चे हफ्ते में मुश्किल से कुल 1 घंटा खेल पाते हैं जबकि 26.1 बच्चे स्कूल में कोई गेम नहीं खेलते। यह बात भी सामने आई है कि भारत में सर्वाधिक 8 प्रतिशत स्टूडैंट्स वैज्ञानिक बनने का सपना देखते हैं, जबकि 16 प्रतिशत छात्र सॉफ्टवेयर डिवैल्पर बनने के इच्छुक हैं, जो सर्वाधिक है। 

 

अगर बच्चे स्कूल में अध्यापक द्वारा पढ़ाए जा रहे विषयों को ध्यानपूर्वक पढें़ और घर आकर उसकी रिवीजन करें तो उन्हें ट्यूशन पढऩे की आवश्यकता नहीं। पेरैंट्स को भी चाहिए कि स्कूलों के साथ संपर्क में रहें ताकि वे अपने बच्चे को स्कूल में स्टडी दौरान आ रही परेशानियों बारे अध्यापक से बात कर सकें। क्लास टीचर द्वारा पढ़ाया गया सिलेबस बच्चा अगर ध्यान से समझ ले तो उसे ट्यूशन पर पैसे खराब करने की जरूरत नहीं रहेगी।     -डी.पी. गुलेरिया,       प्रिंसीपल बी.सी.एम., चंडीगढ़ रोड।

 

मेरे मुताबिक तो पेरैंट्स को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि ट्यूशनों पर खर्च होने वाले उनके पैसे बच सकें। अगर बच्चे को कोई विषय या लैसन समझने में दिक्कत आ रही है तो प्रिंसीपल से आकर बात करें ताकि बच्चे की स्कूल समय के बाद या पहले एक्स्ट्रा क्लास स्कूल में ही कक्षा अध्यापक की ओर से ही लगवाई जा सके। पेरैंट्स स्कूल में आकर अगर बात करें तो उन्हें अपने बच्चों को ट्यूशनों पर भेजने की जरूरत नहीं रहेगी। -डा. सतवंत कौर भुल्लर, प्रिंसीपल, डी.ए.वी., पक्खोवाल रोड।

 

आज के समय में ट्यूशन पढ़नाएक ट्रैंड बन चुका है। पेरैंट्स भी सोचते हैं कि बच्चे के अधिक अंक तभी आ सकते हैं जब वह स्कूल समय के बाद ट्यूशन पर जाएगा, लेकिन आजकल जो हालात हैं उसमें एक-एक ट्यूशन सैंटर पर एक समय में काफी बच्चे एक साथ पढ़ते हैं, जबकि स्कूलों की कक्षा में बच्चों की सुविधा मुताबिक स्टूडैंट्स विभाजित किए हुए हैं। अगर बच्चे को स्कूल के क्लास रूम में कुछ समझ नहीं आता तो भारी संख्या में बच्चों से भरे ट्यूशन सैंटरों पर क्या समझ आता होगा यह बात समझ से परे है? वहीं कई टीचर ऐसे भी हैं जो कक्षाओं में बच्चों को सही ढंग से पढ़ाते नहीं ताकि बच्चे उनके घर में ट्यूशन पढऩे आएं, इसलिए पेरैंट्स को चाहिए कि बच्चों की पढ़ाई पर स्वयं ध्यान केंद्रित करें और पढ़ाई संबंधी किसी भी परेशानी बारे स्कूल प्रिंसीपल से बात करें ताकि उनकी परेशानी दूर हो। बेवजह ट्यूशनों पर फीसें भरना उचित नहीं है। 
    -डा. राजेश रूद्रा, चेयरमैन, ग्रीनलैंड स्कूल्ज़।

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