हाइपरटैंशन से 10 में से हर 2 स्कूली बच्चे हैं पीड़ित

Edited By Sonia Goswami,Updated: 15 Jan, 2019 12:40 PM

every 2 out of 10 schoolchildren suffer from hypertension

युवा और बड़े-बुजुर्ग ही हाइपरटैंशन यानी उच्च रक्तचाप की समस्या से पीड़ित नहीं हैं, बल्कि स्कूली बच्चे भी अब इसका शिकार होने लगे हैं। यह खुलासा हरियाणा, गोवा, गुजरात और मणिपुर में हाल ही में हुए एक अध्ययन में हुआ है कि हर 10 में से 2 स्कूली बच्चे...

नई दिल्ली (विशेष): युवा और बड़े-बुजुर्ग ही हाइपरटैंशन यानी उच्च रक्तचाप की समस्या से पीड़ित नहीं हैं, बल्कि स्कूली बच्चे भी अब इसका शिकार होने लगे हैं। यह खुलासा हरियाणा, गोवा, गुजरात और मणिपुर में हाल ही में हुए एक अध्ययन में हुआ है कि हर 10 में से 2 स्कूली बच्चे हाइपरटैंशन से पीड़ित हैं। 


अध्ययन से पता चलता है कि कुछ बच्चों में उच्च रक्तचाप बेहद कम होता है और इसे जीवनशैली में बदलाव करके मसलन नियमित व्यायाम और खान-पान से ठीक किया जा सकता है। मोटे बच्चों के मामले में इसे नमकीन खाद्य पदार्थों का कम सेवन और वजन कम करके ठीक किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो स्थिति खराब हो सकती है और शूगर, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। 

 

यह अध्ययन 4 राज्यों में प्राथमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों के 14,957 छात्रों पर किया गया था। 2016 में एम्स द्वारा जर्नल पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक अन्य सर्वे में दिए गए सुझाव के मुताबिक इस सर्वे के लिए 5, 10 और 15 वर्ष की आयु के बच्चों से 120/80,125/85 और 135/90एम.एम. मर्करी का स्तर लिया गया। हाल ही में यूरोपीय जर्नल ऑफ  प्रिवैंटिव कार्डियोलॉजी में पब्लिश स्टडी की लेखिका डॉ. अनीता सक्सेना ने कहा कि 23 प्रतिशत बच्चों में हाइपरटैंशन था। इस स्टडी को एम्स, गोवा मैडीकल कॉलेज, मणिपुर के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान, मुम्बई के कोकिलाबेन-धीरूभाई अंबानी अस्पताल और यू.के. की यूनिवॢसटी ऑफ ग्लासगो ने कंडक्ट किया था। 


हरियाणा में (26.5 प्रतिशत) गुजरात (15 प्रतिशत) और गोवा (10 प्रतिशत) के बाद मणिपुर (29 प्रतिशत) छात्रों में सबसे ज्यादा उच्च रक्तचाप पाया गया। उच्च रक्तचाप में यह विविधता विभिन्न स्थानों में अलग-अलग खान-पान और उसमें सॉल्ट इन्टेक और अन्य पर्यावरण संबंधी कारणों की वजह से हो सकती है। 

बच्चों को स्वस्थ जीवनशैली बारे शिक्षित करने की जरूरत 


डा. अनीता सक्सेना ने इस बात पर जोर दिया कि स्कूली बच्चों में उच्च रक्तचाप के लिए नियमित जांच की जानी चाहिए ताकि त्वरित एक्शन लिया जा सके। इसके लिए स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रमों में ब्लड प्रैशर की जांच शामिल होनी चाहिए। जिन बच्चों में यह ज्यादा हो उन्हें स्पैशलिस्ट्स को रैफर कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा स्कूल के स्वास्थ्य कर्मियों को बच्चों को स्वस्थ जीवनशैली की आदतों के महत्व के बारे में भी शिक्षित करना चाहिए। अगर इसे जल्दी शुरू किया जाए तो आगे चलकर डायबिटीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक जैसी बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है। 

 

दिल्ली में 3 से 4 प्रतिशत बच्चों को हाइपरटैंशन
इससे पहले 2013 में एम्स की तरफ से करवाए गए एक सर्वे की रिपोर्ट मुताबिक दिल्ली में 3-4 प्रतिशत बच्चे उच्च रक्तचाप के शिकार पाए गए थे। इनमें ज्यादातर के पीछे हार्ट डिजीज कारण था। यह अध्ययन अमरीकन हार्ट एसोसिएशन की सिफारिश पर निगम के अंतर्गत आते स्कूलों और केंद्रीय विद्यालयों में किया गया था। हार्ट स्पैशलिस्ट डा. उमेश कपिल के अनुसार रक्तचाप के कारण 16 प्रतिशत इस्कीमिक हार्टडिजीज, 21 प्रतिशत पैरीफिरल वैस्कुलर, 24 प्रतिशत मायोकार्डियल इंफ्राएक्शन और 29 प्रतिशत स्ट्रॉक का खतरा रहता है। नियमित जांच और उच्च रक्तचाप नियंत्रण से  कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा कम किया जा सकता है। 

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