तेजी से बदल रहा है बाल रंगमंच के विषयों का कलेवर

Edited By pooja,Updated: 26 Nov, 2018 01:32 PM

gradually changing child theme topics

बाल रंगमंच की विषय वस्तु में समय के साथ बदलाव देखा जा रहा है। अब यहां बच्चों के नाटकों से हटकर लैंगिक रूढि़वादिता, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय जैसे विषयों को भी जगह मिलने लगी है।

नई दिल्ली: बाल रंगमंच की विषय वस्तु में समय के साथ बदलाव देखा जा रहा है। अब यहां बच्चों के नाटकों से हटकर लैंगिक रूढि़वादिता, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय जैसे विषयों को भी जगह मिलने लगी है।      

 

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में थियेटर इन एजुकेशन कंपनी (टी.आई.ई.) के प्रमुख अब्दुल लतीफ खताना ने पीटीआई-भाषा को बताया, जमीनी स्तर पर, छोटे कस्बों और शहरों में तकरीबन हर स्कूल अपने सालाना समारोह में कम से कम एक नाटक का प्रदर्शन करता है। स्थापित थियेटर समूहों के के साथ कुछ ऐसे समूह भी हैं जो पूरी निष्ठा से बच्चों के साथ और उनके लिए काम कर रहे हैं।   

 


उन्होंने कहा कि 30-35 साल के छोटे इतिहास के बावजूद जमीनी स्तर पर हो रही घटनाओं पर गंभीर रूप से काम करने वाले बच्चों के थियेटरों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। लतीफ ने कहा कि अपने शुरूआती वर्षों में बाल थियेटर काल्पनिक कथाओं और बच्चों के परिधानों के लिए जाने जाते थे लेकिन महिला सशक्तिकरण, लैंगिक रूढि़वादिता और सामाजिक न्याय पर काम करने से इनके विषयों में परिपक्वता आई है। बच्चों की अब खुद की सोच विकसित होने लगी है और उन्हें पेश करने के लायक समझा जाने लगा है, उन्होंने थियेटर के माध्यम से ये संदेश दिया है। 

 

खताना कहते हैं, बाल थिय बाल थियेटर अपनी पुरानी परंपरा के बिल्कुल उलट दौर से गुजर रहे हैं। हमने महसूस करना शुरू कर दिया है कि बच्चों की जिंदगी बड़े लोगों से बिल्कुल अलग नहीं है। उनके अपने मुद्दे, परेशानियां और विचार ङ्क्षबदू हैं। वे भी अपने मत प्रकट करने योग्य हैं। वे पूरी तरह खास हैं। इस बदलाव का एक सबूत जश्न ए बचपन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव है जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, असमी, मलयालम और बंगाली समेत 23 थियटेर प्रोडक्शन्स में 500 से ज्यादा युवा और व्यस्क कलाकार हिस्सा ले रहे हैं।नौ दिवसीय महोत्सव में रविवार को खत्म हुए श्रीलंका के रेड एप्पल इंटरनेशनल थियेटर के एक स्टेज प्ले प्यूबर्टी में बालिकाओं की बढ़ती उम्र के बारे में दिखाया गया।      

 

इसके अलावा चंडीगढ के विंग थियेटर अकादमी और विवेक हाई स्कूल का नाटक शी स्टुड अप भी महिला सशक्तिकरण और लैंगिक रूढि़वादिता के इर्द-गिर्द घूमता है।   अब्दुल लतीफ खताना का सुझाव है, हमारा देश काफी बड़ा है, लिहाजा यहां कोई एक संस्थान या संगठन तेजी से बदलाव नहीं ला सकता। हमें एक समाज की तरह नीतिगत बदलाव लाने चाहिए, जिन्हें राज्यों द्वारा अमल में लाने की जरूरत है, ड्रामा और थियेटर को स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!