IIT  दिल्ली में स्थापित होगा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ

Edited By Riya bawa,Updated: 02 Nov, 2019 09:56 AM

iit delhi to set up space technology cell

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली...

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली, इसरो के सहयोग से अतंरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ की स्थापना करेगा। इसकी घोषणा शुक्रवार को आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने की। प्रो. वी राम गोपाल राव ने शुक्रवार को कहा कि आईआईटी दिल्ली अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुसंधान में योगदान देने के लिए इसरो के सहयोग से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करने जा रहा है। यह केंद्र अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में केंद्रित कुछ चुनी हुई अनुसंधान परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगा। 

आईआईटी दिल्ली ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को उसके अनुसंधान क्षेत्रों में अकादमिक सहयोगी होने के लिए भी प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। जिसमें आईआईटी दिल्ली आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई), नैनो टेक्नोलॉजी, फंक्शनल टेक्सटाइल्स और स्मार्ट मैनुफैक्चरिंग या किसी अन्य क्षेत्र में भी काम करने को तैयार है। इस पहल के साथ आईआईटी दिल्ली भी आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी बंबई, आईआईटी कानपुर, आईआईटी खडग़पुर, आईआईटी मद्रास, आईआईटी गुवाहाटी और आईआईटी रूड़की की जमात में शामिल हो जाएगा जहां अंतरिक्ष विज्ञान में शोध करने बढ़ाने के लिए अतंरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं। 

प्रतिजीवाणु प्रतिरोध से निपटने का शोधार्थी ढूंढ रहे समाधान 
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ता प्रतिजीवाणु प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) की समस्या से निपटने के लिए नैदानिक समाधान ढूंढऩे की दिशा में एक प्रौद्योगिकी पर काम कर रहे हैं। इस प्रौद्योगिकी की मदद से विषाणु संक्रमण (बैक्टीरियल इंफेक्शन) का तेजी से पता लगाया जा सकेगा और उपचार पद्धति तय की जा सकेगी। आईआईटी के प्रोफेसर विवेकानंदन के अनुसार शोध नैदानिक जांचों में प्रतिजीवाणुओं के अनावश्यक प्रयोग को घटाएगा और प्रतिरोध विकसित होने को कम करेगा क्योंकि वर्तमान में प्रतिजीवाणु प्रतिरोध जीव विज्ञान और त्वरित निदान के लिए बायोमार्कर एवं प्रौद्योगिकी की उपलब्धतता के बीच समझ का बड़ा अंतर है। 

परियोजना के प्रधान अनुसंधानकर्ता प्रो. विवेकानंदन पेरुमल ने कहा कि प्रतिजीवाणु प्रतिरोध अब इस सदी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या मान ली गई है। मौजूदा जीवाणु विज्ञान तरीकों के सीमित होने के कारण ऐसा अनुमान है कि एंटीबायोटिक दवाएं लेने के दो-तिहाई नुस्खे बेवजह लिखे जाते हैं और प्रकृति में प्रयोग आधारित होते हैं। यह चलन पिछले दशक में प्रतिजीवाणु प्रतिरोध (एएमआर) के उभरने और इसके तेजी से प्रसार के पीछे बड़ा कारण है। अनुसंधान टीम 4 बड़े रोगाणुओं पर ध्यान केंद्रित करेगी जो भारतीय नैदानिक व्यवस्था में प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक) के खिलाफ अक्सर प्रतिरोध विकसित कर लेती हैं।

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