Edited By Sonia Goswami,Updated: 07 Sep, 2018 04:10 PM
कहते हैं कि अपनों के लिए तो हर कोई कुछ न कुछ करता है लेकिन असली पुण्य दूसरों के लिए कार्य करना है। इसी तरह की मिसाल पेश की 56 वर्षीय कंकनाल किशन रेड्डी ने । जब वर्ष 2013 में गढ़कुरथी गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में उन्होंने हेडमास्टर के रूप...
कहते हैं कि अपनों के लिए तो हर कोई कुछ न कुछ करता है लेकिन असली पुण्य दूसरों के लिए कार्य करना है। इसी तरह की मिसाल पेश की 56 वर्षीय कंकनाल किशन रेड्डी ने । जब वर्ष 2013 में गढ़कुरथी गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में उन्होंने हेडमास्टर के रूप ज्वांइन किया तो वह यह जानकर चौंक गए कि इसमें केवल 39 छात्र हैं।
उन्होंने इसके लिए जब वहां बातचीत की तो पता चला कि क्षेत्र के अन्य बच्चें निजी अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालयों में जा रहे हैं। इसके बाद उन्हें निराशा का झटका लगा और उन्होंने इस बारे कुछ करने का फैसला किया। सबसे पहले श्री रेड्डी ने 2015-16 से स्कूल में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाने के लिए संबंधित शिक्षा अधिकारियों को आश्वस्त किया। उसके बाद उन्होंने हर घर का दौरा कर लोगों को सरकारी स्कूल में अपने बच्चों का नामांकन करने के लिए राजी किया।
इसके बाद उन्होंने 2015-16 के पहले शैक्षिक वर्ष के लिए अंग्रेजी में पाठ्यपुस्तकों को खरीदने के लिए अपना पैसा खर्च किया। 2016-17 के लिए उन्होंने पुस्तकों की खरीद पर 25,000 रुपए खर्च किए। इसके बाद उन्होंने छात्रों के लिए बेल्ट और आईडी कार्ड खरीदने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग किया, ताकि वे अपने निजी स्कूल के समकक्षों से कम महसूस न करें। इतना सब करने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी परिवहन। यहीं कारण था कि आस-पास के गांवों के छात्र अक्सर पर्याप्त परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण दूसरे स्कूलों में बंटे हुए थे।
इसी बात से चिंतित श्री रेड्डी ने 80,000 खर्च करके छात्रों को स्कूल में वापस लाने के लिए सात सीटों वाली ऑटोरिक्शा खरीदी। उन्होंने अपनी जेब से भुगतान करने के लिए एक महीने में 5,000 रुपए के वेतन पर एक ड्राइवर नियुक्त किया। ये चालक स्कूल से लगभग 7 किमी दूर कोंडापुर गांव की यात्रा के साथ अपने दिन की शुरूआत करता है, जहां से लगभग 11 छात्रों को लाता है। ऐसे ही वे दूसरी तथा तीसरी यात्रा करता है।
श्री रेड्डी का कहना है कि उन्होंने केवल ऑटो खरीदा था क्योंकि वह उन गांवों से आने वाले छात्रों के लिए सुरक्षित, आरामदायक और सस्ते परिवहन प्रदान करना चाहते थे ताकि उन्हें दूरी पैदल तय न करनी पड़े। उन्होंने बताया कि ऑटो चालक को गांव शिक्षा समिति की सहमति से नियुक्त किया गया था। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अगले शैक्षिक वर्ष में छात्रों की संख्या 200 से अधिक हो जाएगी।