कचरा बीनते पिता की निकली उमर,बेटा डाक्टर बन संवारेगा भविष्य

Edited By Sonia Goswami,Updated: 20 Jul, 2018 04:32 PM

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मेहनत करने वालों के रहा में मुश्किलें अकसर आती हैं लेकिन उन्हें कामयाबी जरुर मिलती है।

नई दिल्लीः मेहनत करने वालों के रहा में मुश्किलें अकसर आती हैं लेकिन उन्हें कामयाबी जरुर मिलती है। सफलता सुविधाओं और संसाधनों की मोहताज नहीं होती। आज हम एक ऐसे लड़के की कहानी बताने जा रहे हैं जो एक पन्नी बीनने वाले का बेटा है पर अब एम्स में डॉक्टरी की पढ़ाई करेगा। 

 

बता दें, दो महीने पहले आयोजित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैडीकल साइंसेज (एम्स) की प्रतिष्ठित चयन परीक्षा में उन्होंने साढ़े 4 लाख परीक्षार्थियों के बीच 707वीं और ओबीसी श्रेणी में 2 लाख विद्यार्थियों के बीच 141वीं रैंक हासिल की है। उन्होंने जोधपुर के मैडीकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन ले लिया है और डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। वह 23 जुलाई को एमबीबीएस की पहली क्लास करेंगे। देवास से लगभग 40 किलोमीटर दूर विजयागंज मंडी में रणजीत चौधरी और ममता बाई के घर वर्ष 2000 में जन्मे आशाराम ने बचपन से ही अपने घर में गरीबी को करीब से देखा है।

 

वहीं घर के नाम पर चौधरी परिवार के पास घास-फूस का एक झोपड़ी है। पिता पन्नियां बीनकर और खाली बोतलें जमाकर घर का खर्च चलाते हैं। कभी-कभी खेतों में काम भी करना पड़ता है। उनके पास जमीन के नाम पर छोटा सा टुकड़ा तक नहीं है। वे कहते हैं कि जायदाद तो उनका हीरे जैसा बेटा आशाराम ही है।  मां गृहिणी है। एक छोटा भाई है जो नवोदय विद्यालय में 12 की पढ़ाई कर रहा है।
 

परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं हैं ऐसे में आशाराम की पढ़ाई गांव के पास ही सरकारी स्कूल में हुई। चौथी कक्षा में दतोत्तर के मॉडल स्कूल में दाखिला लिया। आशाराम बताते हैं बचपन से पढ़ाई में कोई कोताही नहीं बरती छठी में जवाहर नवोदय विद्यालय चंद्रकेशर में पहुंच गए।

 

यहां 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद दक्षिणा फाऊंडेशन पुणे की प्रवेश परीक्षा दी। आशाराम चुने गए और 11वीं-12वीं की परीक्षा उन्होंने यहीं से अच्छे अंकों के साथ पास की। साथ मैडीकल एंट्रेंस की तैयारी भी करते रहे। इसी साल मई में आशाराम ने परीक्षा दी जिसमें एम्स में वे चुन लिए गए। किसी समय बीपीएल कार्ड के लिए रिश्वत मांगी तो तत्कालीन एडीएम ने मदद की थी।

 

आशाराम अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता के अलावा शिक्षकों और देवास के तत्कालीन एडीएम डॉ. कैलाश बुंदेला को देते हैं। वे बताते हैं- मुझे पता था कि मेरे पास  पैसे नहीं है इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर ही मैं आगे पढ़ पाऊंगा। मुझे बीपीएल कार्ड बनवाना था लेकिन रिश्वत मांगी गई। मैंने ADM डॉ.  कैलाश बुंदेला को परेशानी बताई।

 

उन्होंने मदद की और कार्ड बन गया। इसके बाद ही पुणे की परीक्षा के लिए पात्र हुआ और दाखिला लिया। जब एम्स में एडमिशन हुआ तो एडीएम सर ने भी शुभकामनाएं दी। आशाराम कहते हैं कि एम्स से एमबीबीएस करने का मेरा सपना पूरा होने जा रहा है। मैं एक अच्छा डॉक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता हूं।


आशाराम का इसी साल नीट में चयन हुआ है। वे किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में रिसर्च साइंटिस्ट भी चुने जा चुके हैं। जर्मनी के सिल्वर जोन फाऊंडेशन संस्थान में भी उनका चयन हो चुका है, जिसमें 332वीं इंटरनेशनल रैंक उन्हें हासिल हुई।  

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