Edited By Riya bawa,Updated: 03 Sep, 2019 02:16 PM
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय...
नई दिल्ली, (पुष्पेंद्र मिश्र): जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में 6 सितंबर को छात्रसंघ चुनाव होने जा रहे हैं। वामपंथी गढ़ में इस बार फिर से विश्वविद्यालय के वोटों के लिहाज से अकेले सबसे बड़े छात्र संगठन एबीवीपी के खिलाफ चार वाम संगठनों आइसा, एसएफआई, एआईएसएफ और डीएसएफ ने एकजुट होकर लेफ्ट यूनिटी बनाई है।
नवोदय टाइम्स ने जब जेएनयू के इतिहास को टटोला तो पता चला कि 2017 में लेफ्ट यूनिटी के अध्यक्ष पद को मिले कुल 1500 वोट के मुकाबले एबीवीपी कैंडिडेट 1042 वोट पाने में सफल रहा था। वहीं 2018 की बात करें तो एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को 1000 के करीब वोट मिले थे। इस वर्ष विश्वविद्यालय परिसर में अलग-अलग छात्रों से जब ये सवाल किया कि इस बार किस कैंडिडेट को अध्यक्ष पद पर देखना चाहते हैं तो जेएनयू के छात्रों ने कहा कि बापसा, एनएसयूआई और राजद के छात्र संगठनों पर छात्रों का भरोसा उतना नहीं है। लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी में सीधी टक्कर है।
छात्रों का कहना है कि जब लेफ्ट उम्मीदवार प्रचार करने आते हैं तो बातों में देश, सरकार और जेएनयू प्रशासन के प्रति नकारात्मकता का स्तर अधिक होता है। उन्होंने कई सालों तक अध्यक्ष पद अपने पास रखा है और हमेशा सरकार और प्रशासन पर आरोप लगाए हैं। इस बार हम बदलाव चाहते हैं ताकि कम से कम एक बार एबीवीपी को मौका देकर इनकी कार्यप्रणाली और वादों को देख लिया जाए। स्कूल ऑफ कम्प्यूटर सिस्टम्स एंड साइंसेज के एक शोधार्थी ने कहा कि लेफ्ट यूनिटी में चुनाव से पहले भी केंद्रीय पैनल के पदों को लेकर बिखराव साफ तौर से देखा गया।
इस बार लेफ्ट संगठन कमजोर है। जब जेएनयू में एबीवीपी के इकाई अध्यक्ष से बात की तो उन्होंने बताया कि 2015 तक ओबीसी छात्रों को हॉस्टल में रिजर्वेशन नहीं था। विवि. में वाईफाई की सुविधा नहीं थी एबीवीपी से जब केंद्रीय पैनल में सौरभ चुनकर आए तो ये मुमकिन हो सका। बीते 3 वर्षों में जेएनयू ने संगठन में विस्तार किया है यही कारण है कि लेफ्ट को यूनिटी में आकर हमसे टक्कर लेनी पड़ रही है। इस वर्ष भी जेएनयू में संगठन बेहतर स्थिति में है देश के बड़े मुद्दे सर्जिकल स्ट्राइक, धारा 370 और तीन तलाक के सुलझने का भी संगठन को अतिरिक्त फायदा होगा। इस बार हम विवि. की मांगों को लेकर ही चुनाव लड़ रहे हैं।