पूरे शिक्षा तंत्र में बदलाव की आवश्यकता है: उपराष्ट्रपति

Edited By pooja,Updated: 20 Nov, 2018 01:16 PM

need for a change in the entire education  vice president

नीचे से ऊपर तक देश के पूरे शिक्षा तंत्र में बदलाव की आश्वयकता है। हमें अपने पढ़ाने के तरीके, परीक्षा तंत्र, तकनीक के इस्तेमाल के तरीके, पाठ्यक्रम और अध्ययन के बारे

नई दिल्ली : नीचे से ऊपर तक देश के पूरे शिक्षा तंत्र में बदलाव की आश्वयकता है। हमें अपने पढ़ाने के तरीके, परीक्षा तंत्र, तकनीक के इस्तेमाल के तरीके, पाठ्यक्रम और अध्ययन के बारे फिर से विचार करना होगा। आज देश की शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता है। यह बातें उपराष्ट्रपति एम. वैकेया नायडू ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू)  के 95वें दीक्षांत समारोह में कहीं। वह यहां डीयू के स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स स्थित मल्टीपरपज हॉल में बतौर मुख्यअतिथि छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे। समारोह में केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह बतौर विशिष्ठ अतिथि उपस्थित रहे। डीयू के कुलपति प्रोफेसर योगेश त्यागी ने अध्यक्षता की। कार्यक्रम में 164 छात्रों को 203 पुरस्कार और पदक प्रदान किए गए, जबकि 600 से अधिक छात्रों को पीएचडी उपाधि प्रदान की गई। 

 

उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश में शिक्षा संस्थानों के बढऩे के साथ उनके अनुरूप शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो रहा है। हम बड़ी संख्या में हर साल युवाओं को उपाधि दे रहे हैं लेकिन क्या वे रोजगार पाने में सक्षम हैं? इसकी वजह है, हमारा वर्तमान शिक्षा तंत्र जो हर विद्यार्थी में मौजूद कुदरती क्षमता को पहचानने में विफल है। इसके अलावा इस शिक्षा तंत्र की वजह से ही बच्चों में अद्वितीय गुण और क्षमताओं का विकास नहीं हो पा रहा है। हमें युवाओं को जिज्ञासु, प्रश्न पूछने वाला और मुक्त रूप से सोचने वाला बनाना होगा। हम विज्ञान में पारंगत और संगीत के विद्वान विद्यार्थी पर एक जैसा पाठ्यक्रम पढऩे का दबाव नहीं बना सकते हैं।

 

उपराष्ट्रपति ने उपाधि पाने वाले सभी छात्रों से कहा कि वह इस उपाधि या अंकों को अपनी सीमा नहीं बनाएं। यह तो सिर्फ नींव है। यहां से आगे आप अपने जीवन में क्या करते हैं और कहां तक पहुंचते हैं, यह पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर है। अपने सपनों और बेहतर बनने की प्यास को सीमाओं में नहीं बांधना। उन्होंने कहा कि आप बहुत खुशकिस्मत हो कि इस महान विश्वविद्यालय से आपको पढऩे का मौका मिला। इस मौके पर ऐसे लाखों बच्चों के बारे में भी सोचें जो यहां पढऩे के योग्य थे लेकिन उन्हें यह अवसर प्राप्त नहीं हुआ।

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