Edited By pooja,Updated: 30 Aug, 2018 02:04 PM
कई प्रमुख शिक्षाविदों ने आज आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा ‘उत्कृष्ट संस्थान’ के चयन के लिए दिशानिर्देशों का
नई दिल्ली: कई प्रमुख शिक्षाविदों ने आज आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा ‘उत्कृष्ट संस्थान’ के चयन के लिए दिशानिर्देशों का उल्लंघन ‘‘अनैतिक’’ और ‘‘शर्मनाक’’ कदम था तथा यह चंद निजी पक्षों को फायदा पहुंचाने के लिए ‘‘साठगांठ के पूंजीवाद’’ जैसा लग रहा है।
सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए अपने सवालों पर मिले जवाब का हवाला देते हुए ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने खबर दी है कि ऐसी संस्थाओं की स्वायत्तता, वित्त, छात्र-शिक्षक अनुपात, पाठ्यक्रम के ढांचे के लचीलेचन, जवाबदेही और नियामक शक्तियों के मुद्दे पर सरकार के भीतर ही गहरे मतभेद थे। अखबार ने अपनी खबर में कहा है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय और वित्त मंत्रालय जवाबदेही, दंड, वित्तीय प्रतिबद्धता, जमीन की उपलब्धता और विशेषज्ञता पर कड़े नियम चाह रहा था जबकि पीएमओ नियमों में ‘नरमी’ चाहता था और उसने ऐसा करने के लिए दखल भी दिया।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने कहा, ‘‘यह पूर्ण निजीकरण और शैक्षणिक कार्रवाई के खात्मे की ओर एक कदम है। जियो को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा देना साठगांठ का पूंजीवाद है और वे मुनाफे के लिए तैयार हो रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वे (सरकार) शिक्षा सहित हर चीज को बेच रहे हैं और यह बहुत शर्मनाक है।’’
बीती जुलाई में एचआरडी मंत्रालय ने रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टीट्यूट सहित छह संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा देने की घोषणा की। गौरतलब है कि जियो इंस्टीट्यूट की अभी स्थापना भी नहीं हुई है। जियो इंस्टीट्यूट को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा दिए जाने के फैसले की विभिन्न तबकों ने आलोचना की थी।
दिल्ली विश्विवद्यालय शिक्षक संगठन (डूटा) के अध्यक्ष राजीव रे ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए हैरत की बात नहीं है, क्योंकि देश में सब कुछ पीएमओ ही चला रहा है। शक्ति का केंद्रीकरण हो चुका है और जिन संस्थाओं से देश की शिक्षा प्रणाली चलाने की उम्मीद की जाती है, उन्होंने अपनी स्वायत्तता गिरवी रख दी है।’’
राज्यसभा सदस्य एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनोज झा ने कहा, ‘‘एचआरडी की ओर से जाहिर की गई ङ्क्षचताओं की अनदेखी करते हुए पीएमओ ने अलग ही कदम उठा लिया। यह हमें बताता है कि नीति निर्माण में किस तरह के नए और बड़े बदलाव आ गए हैं।’’