Edited By bharti,Updated: 13 Jun, 2019 01:36 PM
जनवरी के दूसरे हफ्ते और अप्रैल के दूसरे हफ्ते में आयोजित की गई जेईई मेन्स परीक्षा 2019 में मार्किंग सिस्टम...
नई दिल्ली (पुष्पेंद्र मिश्र): जनवरी के दूसरे हफ्ते और अप्रैल के दूसरे हफ्ते में आयोजित की गई जेईई मेन्स परीक्षा 2019 में मार्किंग सिस्टम को लेकर हजारों अभ्यर्थियों और अभिभावकों ने चिंता व्यक्त की थी। उनका कहना था कि कैट और आईआईएम जैसे संस्थानों में दाखिले के लिए अभ्यर्थियों की रैंक निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पर्सेंटाइल सिस्टम को ही राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) ने अपनाया है। इससे लाखों अभ्यर्थियों की रैंक अच्छे अंक होने के बावजूद नीचे चली जाती है। पंजाब की एक पीड़ित अभिभावक मनीषा गुप्ता कहती हैं कि पर्सेंटाइल सिस्टम में प्राप्तांकों के बाद लगे प्वाइंट के बाद 7 अंकों तक को रैंक निर्धारण में इस्तेमाल किया जाता है। यह परीक्षा कई बैचों में आयोजित की जाती है। इसकी मार्किंग स्कीम को ऐसे समझ सकते हैं कि पहले बैच के अभ्यर्थी को मिले अधिकतम अंकों को 100 पर्सेंटाइल मान लिया जाता है। बाकी अभ्यर्थियों के माक्र्स को उससे कम्पेयर करते चले गए।
अगर ये मान लिया जाए कि पहले बैच के अभ्यर्थी को 90 अंक मिले थे तो इसे ही 100 पर्र्सेंटाइल मान लिया जाएगा। इसके बाद के बैच के किसी अभ्यर्थी के अधिकतम अंक 93 हैं तो उसे सेंकेंड मान लिया जाएगा। उसकी 99 पर्सेंट काउंट की जाएगी। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी के डायरेक्टर जनरल विनीत जोशी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि फिलहाल हम पर्सेंटाइल सिस्टम पद्धति पर जेईई मेन्स अभ्यर्थियों को रैंक दे रहे हैं। जिसके लिए बाकायदा देश की दिल्ली, बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे आईआईटीज के प्रोफेसरों की एक कमेटी बनी हुई है। इस मार्किंग सिस्टम पर इतना कहा जा सकता है कि जेईई मेन्स एग्जाम के बाद मिले फीडबैक के आधार पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही तय करेगा कि मार्किंग स्कीम कौन सी रहेगी। एनटीए मंत्रालय के आदेशों का पालन करेगा।