मंदिर-मस्जिद पर गहमागहमी छोड़ अपनी ही धुन में रमे अयोध्या के विद्यार्थी

Edited By Sonia Goswami,Updated: 07 Dec, 2018 09:01 AM

students from ayodhya in their own tune

चुनावी मौसम की आहट में मंदिर निर्माण को लेकर एक बार फिर सरगर्म हो रही अयोध्या में इस बार छह दिसम्बर को बाबरी विध्वंस की बरसी पर ‘शौर्य दिवस’ और ‘यौम-ए-गम‘ के आयोजनों के बीच शहर के छात्र-छात्राएं इस सबसे बेपरवाह अपनी शिक्षा-दीक्षा की धुन में रमे हैं।

अयोध्याःचुनावी मौसम की आहट में मंदिर निर्माण को लेकर एक बार फिर सरगर्म हो रही अयोध्या में इस बार छह दिसम्बर को बाबरी विध्वंस की बरसी पर ‘शौर्य दिवस’ और ‘यौम-ए-गम‘ के आयोजनों के बीच शहर के छात्र-छात्राएं इस सबसे बेपरवाह अपनी शिक्षा-दीक्षा की धुन में रमे हैं।  अयोध्या में छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस को आज 26 साल हो गए। हिन्दूवादी संगठन जहां इसे ‘शौर्य दिवस‘ के रूप में मना रहे हैं, वहीं मुस्लिम पक्ष इसकी बरसी पर हर साल की तरह ‘यौम-ए-गम‘ का मातम मना रहा है। जहां दोनों पक्षों के लिए यह बहुत बड़ा मुद्दा है, वहीं अयोध्या के छात्र-छात्राओं की अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं। 

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राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मनोज दीक्षित ने बताया कि विद्यार्थियों से साफ कह दिया गया है कि वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें। अगर किसी की कोई राजनीतिक सम्बद्धता है तो उसे रोका नहीं जाएगा, लेकिन ज्यादातर विद्यार्थी यह समझते हैं कि उनका भविष्य उनकी शिक्षा से ही जुड़ा है। उन्होंने कहा कि अयोध्या में हाल में हुई किसी भी गतिविधि का विश्वविद्यालय तथा उससे जुड़े किसी भी कालेज के परिसर के माहौल पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक कि 25 नवम्बर (जिस दिन अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद की धर्म सभा हुई) को भी विश्वविद्यालय और सम्बद्ध कालेजों में सामान्य रूप से शिक्षण कार्य हुआ। हालांकि माहौल को देखते हुए उस दिन छात्र संख्या जरूर कम रही। मगर हॉस्टल में तथा विश्वविद्यालय के आसपास रहने वाले विद्यार्थियों ने कक्षाओं में हाजिरी दी।     

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इस वक्त अवध विश्वविद्यालय पर अपने नौ विभागों, ऑन कैम्पस इंजीनियरिंग इंस्टीटच्यूट और अयोध्या, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, अम्बेडकर नगर, लखनऊ, बाराबंकी, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, अमेठी और गोण्डा जिलों के 600 सम्बद्ध कॉलेजों के करीब सात लाख विद्याॢथयों के शिक्षण कार्य का दारोमदार है।     

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गौतमबुद्ध डिग्री कॉलेज के शिक्षक निलय तिवारी ने भी कुछ ऐसे ही ख्यालात का इजहार किया। उन्होंने कहा ‘‘चाहे धर्म सभा हो, शौर्य दिवस या यौम-ए-गम हो। ये सभी अलग-अलग गुटों या पार्टियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम हैं। भले ही ये आयोजन अलग-अलग आस्थाओं से जुड़े हों लेकिन हमारे विद्यार्थी इनसे जुडऩे से परहेज ही करते हैं। 

 

उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त के छात्र-छात्राएं बहुत परिपक्व हैं। वे अयोध्या विवाद और उसके नतीजों को देखते हुए ही बड़े हुए हैं। उनके लिये पढ़ाई सबसे पहले हैं।साकेत महाविद्यालय के पूर्व छात्रनेता गौरव मणि त्रिपाठी ने कहा कि वह अयोध्या मामले का जल्द निपटारा चाहते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उच्चतम न्यायालय इस प्रकरण में जल्द फैसला सुनाए। इससे मंदिर-मस्जिद के नाम पर होने वाली सियासत खत्म हो जाएगी। हर आदमी अपनी रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त है। छह दिसम्बर को अयोध्या में होने वाले आयोजन आम लोगों को अब आर्किषत नहीं करते।  अवध विश्वविद्यालय की कर्मचारी वत्सला तिवारी ने कहा कि उन्हें अयोध्यावासी होने पर गर्व है। अयोध्या का नाम भले ही राजनीतिक उद्देश्यों से लिया जाता हो, लेकिन हम यहां सिर्फ शांति चाहते हैं। भाषा सलीम
 

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