Edited By Riya bawa,Updated: 07 Sep, 2019 11:59 AM
कहते है "किस्मत बदलने में देर नहीं लगती",...
नई दिल्ली: कहते है "किस्मत बदलने में देर नहीं लगती", हर जीवन की कहानी एक सी नहीं होती, लेकिन किसी मोड़ पर कुछ ऐसा होता है जिससे पूरी कहानी बदल जाती है। बहुत से उम्मीदवार अपना ख्वाब पूरा करने के लिए वर्षों तैयारी करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो पहले ही प्रयास में और बेहद कम उम्र में यह उपलब्धि हासिल कर लेते हैं। इन्हीं होनहारों में से एक हैं उत्तर प्रदेश के मेरठ से शशांक मिश्रा।
शशांक मिश्रा ने 2007 में 5वीं रैंक हासिल कर अपना IAS बनने का सपना पूरा किया है। बता दें कि आर्थिक तंगी के वाबजूद शशांक ने दिन रात मेहनत करके और हर पल संघर्ष करके एक बड़ी सफलता हासिल की है।
जानिए IAS बनने की कहानी
पारिवारिक जीवन
शशांक मिश्रा उत्तर प्रदेश के मेरठ से हैं उनके पिता कृषि डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर थे। शशांक का जीवन बहुत ज्यादा साधारण और आर्थिक तंगी से भरपूर था। शशांक 12वीं में थे और साथ-साथ आईआईटी में दाखिले के लिए तैयारी कर रहे थे।
पिता का साया सिर से उठा
ज़िंदगी ने तब करवट ली जब पिता का साया सिर से उठ गया। पिता के जाने के बाद शशांक पर अपनी पढ़ाई की जिम्मेदारी तो आ ही गई, साथ ही तीनों भाई-बहन की जिम्मेदारी भी उन पर आ गई। पिता के जाने के बाद सिर्फ जिम्मेदारियां निभाने का दौर ही शुरू नहीं हुआ, तभी से उनकी ज़िंदगी में आर्थिक तंगी का दौर भी शुरू हुआ।
"अंधे का खुदा रखवाला"
जिंदगी के इस मुश्किल इस दौर में उनके लिए फीस तक भरना तक मुश्किल था लेकिन कहते हैं न "अंधे का खुदा रखवाली". उस मुश्किल दौर में शशांद को भी थोड़ी राहत मिली। 12वीं में उनके नंबर अच्छे, जिस वजह से कोचिंग की फीस कम कर दी गई।
IIT Entrance और जॉब
शशांक ने पूरी मेहनत से पढ़ाई की आईआईटी के एंट्रेंस में 137वीं रैंक आई, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से बीटेक किया था। अमेरिका की मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी लगी। उन्होंने यूएस कंपनी की अच्छे पैकेज की नौकरी जॉइन नहीं की। 2004 से यूपीएससी की तैयारी शुरू की।
-शंशाक ने दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाना शुरू किया लेकिन आमदनी इतनी नहीं थी कि दिल्ली रह सके। वह रोजाना मेरठ से दिल्ली आते-जाते थे आने-जाने में जो समय लगता, उस दौरान ट्रेन में खुद पढ़ाई करते।
दो साल इसी तरह गुजारे, तैयारी भी की। तैयारी के दौरान आलम ये था कि भरपेट खाना नसीब नहीं होता था। रास्ते में भूख लगती तो भी उतने पैसे नहीं होते थे कि भरपेट खाना खा सकें। शशांक अकसर बिस्किट खाकर गुजारा करते थे।
दूसरे प्रयास में हासिल की 5वीं रैंक
शशांक की मेहनत रंग लाई, पहले अटेंप्ट में एलाइड सर्विस में सेलेक्शन हो गया, लेकिन इसके बाद भी वे नहीं रुके। 2007 में दूसरे प्रयास में 5वीं रैंक हासिल कर आईएएस बने। शशांक फिलहाल मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले के कलेक्टर हैं।