शिक्षकों से गैर शैक्षणिक काम करवाने पर  उच्च न्यायालय ने लगाई अधिकारियों को फटकार

Edited By bharti,Updated: 27 Jan, 2019 06:35 PM

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्कूली शिक्षकों से शिक्षण-अध्यापन से दूर-दूर तक नाता नहीं रखने वाले काम कराने...

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्कूली शिक्षकों से शिक्षण-अध्यापन से दूर-दूर तक नाता नहीं रखने वाले काम कराने को लेकर अधिकारियों को फटकार लगाई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि नगर निगमों द्वारा प्रधानाचार्यों और शिक्षकों से ऐसे काम करने को नहीं कहा जा सकता जो शिक्षा का अधिकार कानून एवं इससे जुड़े नियमों के दायरे में नहीं आते हों। न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने निगमों की ओर से जारी ऐसी कई अधिसूचनाओं को दरकिनार कर दिया जिसमें प्रधानाचार्यों एवं शिक्षकों से कहा गया था कि वे घर-घर जाकर सर्वेक्षण करें और वार्ड शिक्षा रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया में हिस्सा लें।

बहरहाल, अदालत ने साफ किया कि स्कूली बच्चों के बैंक खाते खुलवाने और उन्हें आधार कार्ड से जोडऩे में प्रधानाचार्यों एवं शिक्षकों की मदद लेने के मामले में अधिकारी सही हैं, लेकिन इस जरूरत को ‘‘आवश्यक’’ नहीं समझा जाना चाहिए और उनकी ओर से पर्याप्त सहायता नहीं करने पर इसे उनके खिलाफ कार्यवाही का आधार नहीं बनाया जा सकता। 

अदालत ने कहा, ‘‘यह अदालत इस तथ्य पर न्यायिक रूप से गौर करने के लिए बाध्य है कि हालिया समय में स्कूलों द्वारा शिक्षकों से ऐसे-ऐसे काम कराने का एक चलन हो गया है जिनका शिक्षण-अध्यापन से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इस अदालत की राय में यह अनुमति देने लायक नहीं है और इसी तरह अंतरात्मा की स्वीकृति योग्य भी नहीं है।’’उच्च न्यायालय ने अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ नाम के एक संगठन की अर्जी पर यह आदेश पारित किया। अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ दिल्ली के नगर निगमों द्वारा संचालित स्कूलों के शिक्षकों का संगठन है। इस संगठन ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को शिक्षण से नहीं जुड़े काम देने को चुनौती दी थी।     

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