Edited By Sonia Goswami,Updated: 12 Sep, 2018 10:31 AM
देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले हो चुके हैं और इन दाखिलों के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं, के मुताबिक इस वर्ष भी इंजीनियरिंग की आधी के करीब सीटें पूरे देश में खाली रह गई हैं जिसके बाद अब ऑल इंडिया काऊंसिल फॉर टैक्रीकल एजूकेशन (ए.आई.सी.टी.ई.)...
जालन्धर (सुमित): देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले हो चुके हैं और इन दाखिलों के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं, के मुताबिक इस वर्ष भी इंजीनियरिंग की आधी के करीब सीटें पूरे देश में खाली रह गई हैं जिसके बाद अब ऑल इंडिया काऊंसिल फॉर टैक्रीकल एजूकेशन (ए.आई.सी.टी.ई.) द्वारा इस मामले में कड़ा कदम उठाने की तैयारी की गई है।
अगर देखा जाए तो यह कोई पहली बार नहीं है कि इंजीनियरिंग की 50 फीसदी सीटें खाली रह गई हों। पिछले कुछ सालों से इसी तरह ही चलता आ रहा है। हर बार ए.आई.सी.टी.ई. द्वारा जहां सीटें खाली रहने के चलते कुछ कालेजों को बंद किया जाता है वहीं कई नए कालेजों को ओपन भी किया जाता है। स्थिति यह बन चुकी है कि बच्चों की गिनती कम हो रही है और कॉलेज अधिक खुल रहे हैं। अब ए.आई.सी.टी.ई. द्वारा इस मामले में उन कालेजों को आपस में मर्ज करने का विचार बनाया गया है जिनमें क्वालिटी एजूकेशन होने के बावजूद वहां पर सीटें खाली रह जाती हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 में 54 फीसदी सीटें खाली रह गई थीं। वैसे एवरेज 47 फीसदी सीटें पिछले 5 सालों से खाली रह रही हैं। हालात यह है कि जिन राज्यों में अधिक सीटें खाली रही हैं, उनके द्वारा तो ए.आई.सी.टी.ई. को यह भी पत्र लिखा गया है कि कुछ समय के लिए नए कॉलेजों को अनुमति न दी जाए। अब देखना यह होगा कि इससे भी आने वाले सैशन में कुछ सुधार हो पाएगा या नहीं।
इस बारे में शिक्षा माहिर प्रो. एम.पी. सिंह का कहना है कि सीटें नहीं भरने का एक मुख्य कारण बच्चों का स्कूल स्तर में से ही अच्छा प्रदर्शन नहीं होता है। किसी भी बड़े कोर्स के लिए नींव स्कूल स्तर से ही रखी जाती है।