Edited By Sonia Goswami,Updated: 13 Feb, 2019 01:09 PM
उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं और इस बार नकल पर रोक लगाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
एजुकेशन डेस्कः उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं और इस बार नकल पर रोक लगाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पिछले साल नकल पर लगाम लगने की वजह से 10 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा बीच में छोड़ दी थी और उसके बाद इस साल भी करीब 9 लाख कम उम्मीदवारों ने रजिस्टर किया है। सरकार भी नकल विहीन परीक्षा के लिए सॉफ्टवेयर से लेकर पुलिस तक की मदद ले रही है। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद नकल पर काफी लगाम लगी भी है।
ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी के सरकार में रहते हुए नकल पर लगाई हो, इससे पहले कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में भी रिजल्ट काफी कम रहा था और उन्हें प्रदेश की कड़ी परीक्षाओं में से एक माना गया था। दरअसल साल 1992 में कल्याण सिंह सरकार में नकलचियों पर लगाम लगा और रिजल्ट 30 फीसदी पर ही सिमट गया। बताया जाता है कि उस वक्त यह नकलचियों को पकड़कर सीधा जेल भेजा रहा था। हालांकि उससे एक साल पहले 1991 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में यह रिजल्ट 80 फीसदी से ज्यादा था। उसके बाद फिर मुलायम सिंह सरकार में धीरे-धीरे पास होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा हो गया।
उसके बाद 1998 और 1997 में कल्याण सिंह के शासन में अन्य सरकारों के मुकाबले रिजल्ट कम रहा और 55 फीसदी बच्चे ही परीक्षा में पास हुए। वहीं 2002 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी 70 फीसदी रिजल्ट रहा, जो आगे काफी बढ़ा। उसके बाद समाजवादी सरकार में रिजल्ट के आंकड़े ने 90 फीसदी का आंकड़ा भी छुआ था। हालांकि बीजेपी नेता राम प्रकाश गुप्ता की सरकार में रिजल्ट प्रतिशत में थोड़ा इजाफा हुआ। उस दौरान कहा जाता था कि मुलायम सिंह यादव नकलचियों पर कार्रवाई करने में मुलायम रहते हैं।
फिर कई साल बाद 2017 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और बीजेपी ने हमेशा की तरह नकलचियों पर लगाम लगाना शुरू कर दिया। उसका असर भी दिखाई दिया और करीब 10 लाख उम्मीदवारों ने इसकी वजह से परीक्षा बीच में ही छोड़ दी। इस साल भी कम लोगों ने परीक्षा में रजिस्टर किया है। सरकार ने नकल रोकने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं और ताजा रिपोर्ट्स के अनुसार कम बच्चे परीक्षा केंद्रों तक पहुंच रहे हैं। हालांकि पिछली बार परीक्षा का रिजल्ट 70-72 फीसदी तक रहा था। इस बार भी छात्रों को डर है कि पास होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में कमी हो सकती है।