Edited By pooja,Updated: 06 Sep, 2018 05:26 PM
जीवन में अपना आत्म विश्लेषण अवश्य करते रहें। मै कौन हूँ? क्या हूँ? कहाँ हूँ? क्या सही है? क्या गलत है? आखिर यह क्यों हुआ? ऐसा क्यों हुआ? मेरे साथ यह घटना क्यों घटी?
जीवन में अपना आत्म विश्लेषण अवश्य करते रहें। मै कौन हूँ? क्या हूँ? कहाँ हूँ? क्या सही है? क्या गलत है? आखिर यह क्यों हुआ? ऐसा क्यों हुआ? मेरे साथ यह घटना क्यों घटी? मैं इस परिस्थिति में क्यों हूँ? आदि का चिन्तन अवश्य करें। ऐसा करने से हम अपने आप से परिचित होंगे, जिससे स्वयं को जान पाएंगे तथा हमारीवास्तविक स्थिति का पता चलेगा। इस तरह किसी भी परिस्थिति, घटना या का आत्मविश्लेषण करते हैं तो हमें उसके पीछे कोई न कोई वजहमहत्पूर्ण अनुभव से परिचित कराती है।
आत्म चिंतन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने और अच्छे किए गए कार्य को और बेहतर ढंग से करने का मौका मिलता है तथा हमारी समझने की भावनात्मक क्षमता और विश्लेषण करने की बौद्धिक क्षमता, दोनों का विकास होता है। उदाहरण के लिए भारतीय चिंतन परंपरा में मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की जो पद्धति विकसित है, वह इसी का प्रकट रूप है। जिसमें हम शांत भाव से स्थित बैठकर किसी समस्या या विचार पर चिंतन, विश्लेषण व समाधान करते हैं। किंतु यह तभी संभव है जब हम इसे बिना उद्वेग अथवा मानसिक दबाव के कर सकें।
आत्म चिन्तन का अर्थ है अपने आप को देखना, अपने अन्दर झाकना, स्वयं का एवं अपने कार्यों का आंकलन करना। अर्थात किसी कार्य को करने या होने के बाद उसके करने में हमारे द्वारा अपनाई गई क्रिया और विचार शक्ति का विश्लेषण करना। जिससे हम जान पाते हैं कि, हम कहाँ हैं? क्या कर रहे? क्या करना चाहिए? निर्णय ले पाते हैं कि, किस दिशा में बढ़ना हैं। उचित व अनुचित का विवेकपूर्ण फैसला करें पाते हैं तथा भटकाव से बचते हैं।
~ सत्यम सिंह बघेल