Exclusive Interview: इतिहास के छिपे सवालों को खंगालती 'द ताशकंद फाइल्स'

Edited By Chandan,Updated: 31 Mar, 2019 09:57 AM

exclusive interview with the starcast of upcoming film the tashkent files

हमारे इतिहास में एक ऐसा बड़ा सवाल शामिल है जिसका जवाब 53 साल बाद भी देश को नहीं मिल सका है। ये सवाल देश के उस नागरिक से जुड़ा है जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद जाकर समझौते पर हस्ताक्षर...

नई दिल्ली। हमारे इतिहास में एक ऐसा बड़ा सवाल शामिल है जिसका जवाब 53 साल बाद भी देश को नहीं मिल सका है। ये सवाल देश के उस नागरिक से जुड़ा है जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद जाकर समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं और उसके कुछ घंटों बाद रहस्मयी तरीके से उनकी मौत हो जाती है। उनके पार्थिव शरीर के साथ देश में आते हैं कई सवाल, जिनका जवाब आज भी कोई नहीं देना चाहता।

इन्हीं सवालों को एक बार फिर से खंगालने 12 अप्रैल को आ रही है विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्मित फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’। इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, पंकज त्रिपाठी, पल्लवी जोशी और श्वेता बसु प्रसाद मुख्य भूमिका में नजर आएंगे। फिल्म के प्रमोशन के लिए दिल्ली पहुंचे विवेक, पल्लवी और श्वेता ने पंजाब केसरी/ नवोदय टाइम्स/ जगबाणी/ हिंद समाचार से खास बातचीत की। 

53 सालों में क्यों नहीं उठा ये विषय
विवेक अग्निहोत्री: मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं कि मेरे दिमाग में ये कॉन्सेप्ट कहां से आया, जबकि मुझे लगता है सवाल यह है कि पिछले 53 सालों से और ये किसी के दिमाग में क्यों नहीं आया। शास्त्री जी की मौत पर कई सवाल भी उठते हैं, उनके परिवार वाले भारत सरकार से बॉडी के पोस्टमॉर्ट्म की मांग भी करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता। यह एक बड़ा सवाल है।

क्यों चुप रहे वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
मैं हैरान हूं कि जो लोग अपने आप को बहुत ही वरिष्ठ पत्रकार बोलते हैं, ह्विसल ब्लोवर कहते हैं या फिर खुद को सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं और भारत की चिंता करते हुए पुलवामा जैसे अटैक का प्रूफ मांगते हैं, इन लोगों को पिछले 53 सालों से क्या सांप सूंघ गया था जो इन्होंने इस मुद्दे पर सवाल नहीं उठाया? इस जिम्मेदारी को लेते हुए अब हम ये सवाल उठाएंगे। 

सच जानना हमारा मौलिक अधिकार
हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमें कभी बताया ही नहीं गया कि सच जानना भी हमारा मौलिक अधिकार है। यहां सरकारें इतना घोटाला करती हैं, इतने पॉलिटिकल मर्डर होते हैं लेकिन हमें कभी किसी का सच पता नहीं चलता है। जिस देश को उसके प्रधानमंत्री का ही सच ना पता हो वहां तो यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में सच की क्या अहमियत है इसका उन्हें अंदाजा नहीं है।

हमारी फिल्म एक चेतना जगाएगी कि अगर आपको लोकतंत्र को मजबूत बनाना है तो देशवासियों को मिलने वाला सबसे पहला मौलिक अधिकार होना चाहिए सच को जानना। इस फिल्म को देखकर आपको यकीन नहीं होगा कि हमारे देश के साथ क्या-क्या हुआ है। यह जरूर कहना चाहूंगा कि ये फिल्म आपको उस दरवाजे के सामने खड़ा कर देगी जिसके अंदर दोषी इंसान बैठा हुआ है।

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फ्रस्टेट होकर लिया था फिल्म छोडने का फैसला
इस फिल्म के लिए रिसर्च करना आसान नहीं था। इसके लिए हमने सारी मिनिस्ट्री में आरटीआई फाइल की और सभी जगह से यही जवाब आया कि उनके पास शास्त्री जी की मौत से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं है। इंटरनेट और किताबों में जब ज्यादा कुछ नहीं मिला तो मैं इतना फ्रस्टेट हो चुका था कि मैंने इसे छोडने का फैसला लेना सही समझा,

लेकिन उससे पहले मैं एक आखिरी कोशिश करना चाहता था। इसलिए मैंने इंटनेट पर अपना एक वीडियो डालकर लोगों से इस सब्जेक्ट से जुड़ी जानकारी शेयर करने की अपील की। लोगों से हमें बहुत ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला और तब पता चला कि उनके जज्बात आज भी शास्त्री जी से जुड़े हुए हैं। यहां से कडि़य़ां जुड़ती गईं और मेरी फिल्म को एक नई दिशा मिली।  

स्पेशल जर्नी है ये फिल्म : श्वेता बसु प्रसाद
मैं रागिनी पुले का किरदान निभा रही हूं जो कि एक यंग और एंबीशियस जर्नलिस्ट है। इस किरदार का एक ग्राफ है, पहले वो स्कैंडल और फेक स्टोरीज लिखती है, लेकिन बाद में वो इस सब्जेक्ट पर लिखना शुरू करती है। इस सब्जेक्ट को लेकर उसमें जुनून सवार हो जाता है और फिर वो इस पर काफी रिसर्च करती है। कह सकती हूं कि ये फिल्म मेरे लिए एक बहुत ही स्पेशल जर्नी जैसी रही जिसमें मैंने काफी कुछ सीखा। 

सरकार के पास नहीं था कोई भी डॉक्यूमेंट: पल्लवी जोशी
यह बात हम बचपन से सुनते आए हैं कि शास्त्री जी को जहर दिया गया था। हार्ट अटैक से शास्त्री जी की मौत वाले सरकारी वर्जन को भारतवासी मानने को तैयार नहीं हैं। यह बहुत ही सेंसिटिव टॉपिक था इसलिए इस पर फिल्म बनाते समय हम कहीं भी गलत नहीं होने देना चाहते थे।

इसके लिए हमने इसकी रिसर्च के लिए बहुत सारे आरटीआई फाइल किए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि शास्त्री जी की मौत से जुड़े कोई भी डॉक्यूमेंट सरकार के पास मौजूद नहीं हैं। तब हमें समझ में आया कि ये एक बहुत ही बड़ा षड्यंत्र है जिसके बाद हमने और रिसर्च शुरू की।

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