फोर्ड का 1959 का इलेक्ट्रिक कार मॉडल अब क्यों है चर्चा में, पढ़िए इस खबर में

Edited By Piyush Sharma,Updated: 14 Sep, 2021 05:01 PM

ford 1959 electric car is now in discussion

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के बढ़ते स्कोप को देखते हुए हर कंपनी के पास इसे लेके अपने प्लान्स हैं और हर कारमेकर्स कंपनी इस दिशा में काम कर रही है। भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बात जब होती है, तो महिंद्रा का नाम हर कोई लेता है। हालांकि अपने कंपटीटर्स से...

ऑटो डेस्क: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के बढ़ते स्कोप को देखते हुए हर कंपनी के पास इसे ले के अपने प्लान्स हैं और हर कार मेकर्स कंपनी इस दिशा में काम कर रही है। भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बात जब होती है, तो महिंद्रा का नाम हर कोई लेता है। हालांकि अपने कंपटीटर्स से पिछड़ने के बाद भी महिंद्रा इलेक्ट्रिक कारों को पेश करने के लिए एक्साइटेड है। महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा का भी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में अच्छा खासा इंट्रेस्ट है।

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हाल ही में आनंद महिंद्रा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 1968 का रॉय डोरिंग की फोर्ड प्रीफेक्ट इलेक्ट्रिक कार का एक वीडियो शेयर किया। जिसके साथ उन्होंने लिखा, "कभी भी समय से आगे जाने से मत डरो... #MondayMotivation (और मुझे लगता है कि एक नई इलेक्ट्रिक कार का नाम 'डोरिंग' रखना एक ग्रेट ट्रिब्यूट और ग्रेट आईडिया होगा।"

ऑटोमोबाइल कम्यूनिटी के बीच यह ट्वीट तुरंत वायरल हो गया। अब अफवाहें ये हैं कि महिंद्रा एक नई इलेक्ट्रिक कार पर काम कर रही है जो 'डोरिंग' नाम के साथ आएगी। वीडियो में 1959 का 100E फोर्ड प्रीफेक्ट मॉडल दिखाया गया है, जिसे रॉय डोरिंग द्वारा इलेक्ट्रिक मॉडल में चलाने के लिए चेंज किया गया था। इसे सेकंड वर्ल्ड वार के बाद ऑस्ट्रेलिया में पहली बिजली से चलने वाली सेडान कहा जाता है। आपको बता दें कि डोरिंग ने उस समय 51 व्हीकल्स को इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में बदला था और ये मॉडल उस लिस्ट में सबसे आखिरी था। इसे पहली बार 2018 में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया दिवस कार्निवाल में दिखाया गया था।

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डोरिंग ने 13 एक्साइड बैटरी और 3 kW इलेक्ट्रिक मोटर के साथ फिट करके इस कार को EV में बदल दिया था। इसे 240V सॉकेट से ही चार्ज किया जाता था। फुल चार्जिंग में 3-8 घंटे लगते थे। ये कार एक बार चार्ज करने पर 70 किमी तक की दूरी तय कर सकती थी, वो भी 60 किमी प्रति घंटे की टॉप स्पीड़ से दौड़ने वाली है।

कितने ताज्जुब की बात है, क्यूंकि आज के दौर में तो इलेक्ट्रिक कारें आम हो गई हैं। पर, 1968 में इलेक्ट्रिक पावर पर कार चलाना एक रिवॉल्यूसनरी आईडिया था।

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