चीन-अमरीका में तनाव बनेगा तीसरे विश्‍वयुद्ध का कारण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Jan, 2018 05:24 PM

america could go to war with china over shock plan to take taiwan

परमाणु संपन्न होते जा रहे देशों की वजह से दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर खड़ी है । लेकिन विशेषज्ञों का मानना इसकी बड़ी वजह उत्तर कोरिया व अमरीका में तनाव नहीं बल्कि ताइवान को लेकर चीन और अमरीका के बीच तनातनी है।

बीजिंगः परमाणु संपन्न होते जा रहे देशों की वजह से दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर खड़ी है । लेकिन विशेषज्ञों का मानना इसकी बड़ी वजह उत्तर कोरिया व अमरीका में तनाव नहीं बल्कि ताइवान को लेकर चीन और अमरीका के बीच तनातनी है। चीन वर्षों से ताइवान का एकीकरण कर देश का कायाकल्प करने का ख्वाब देख रहा है तो अमरीका ने दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर जता दिया है कि वह चीन का कोई भी जबरन उठाया गया कदम सफल नहीं होने देगा।

 ब्रिटेन के एक्सप्रेस अखबार की खबर के मुताबिक दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ता जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों की सलाह पर चीन ताइवान पर जबरन काबू करना चाहता है। चीन का यह कदम अमरीका को युद्ध के लिए उकसा सकता है। बीजिंग ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है और हमेशा उसे चीन का ही हिस्सा बताता है, जबकि कंट्टरपंथी अधिकारी आइलैंड को चीन का हिस्सा मानने से इनकार करते हैं और यह भी मानते हैं कि चीन का उस पर आधिपत्य जमाना मुश्किल है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि आइलैंड पर कब्जा जमाने के लिए चीन ने एक टाइम टेबल भी बना ली है और चीनी सेना 2020 में ताइवान को अपना बनाने के लिए कदम उठा सकती है। विशेषज्ञों की राय में इलाके में अमरीकी सुरक्षा और ताइवान को लेकर खाई गई राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उसे अपना बनाने की कसम शांति से समाधान नहीं निकालने दे रही है और इस बात की बहुत संभावना है कि चीन और अमरीका की इस तनातनी से वैश्विक स्तर पर मतभेद उभरेंगे, क्यों कि ताइवान ने वॉशिंगटन के साथ यह संधि पहले ही कर रखी है कि अगर देश पर कोई खतरा आता है तो उसे उसकी सुरक्षा के लिए आगे आना होगा।

चरहार इंस्टीट्यूट के थिंक टैंक के एक शोधार्थी डेन युवेन ने कहा कि कुछ कारणों के चलते बीजिंग दुनिया की परवाह न करते हुए शांतिपूर्ण बातचीत की बजाय ताकत से एकीकरण करने की ओर कदम बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो दोनों के बीच क्रॉस स्ट्रेट संबंध बिगड़े हुए चल रहे हैं। दूसरा यह कि ताइवान की नई पीढ़ी के बीच चीन की पहचान कम हो रही है। तीसरा यह कि ताइवान की राजनीतिक पार्टियों का प्रभाव खत्म हो रहा है। अगर चीन की बड़ी पार्टी कुओमिवताग फिर से जीतती है, तब क्रॉस स्ट्रेट एकीकरण आसान नहीं होगा।

2016 में ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन से फोन पर बात की थी। जिसका नतीजा यह हुआ था कि चीन और ताइवान के संबंधों में तल्खी आ गई थी। अमकारी ने 1979 के बाद ताइवान से बात की थी। बीजिंग ने वन चाइना पॉलिसी के तहत अमरीका को मनाने में सफल रहा था कि वह ताइवान से बात नहीं करेंगा। वन चाइन पॉलिसी के तहत ताइवान में उसकी सरकार होगी लेकिन वह चीन का ही हिस्सा रहेगा। इधर ट्रंप ने 2018 के रक्षा प्राधिकरण अधिनियम पर हस्ताक्षर कर अमरीकी नौसेना के जहाज ताइवान भेज दिए थे। अमरीका के इस कदम से वरिष्ठ चीनी राजनयिक ली केक्सिन ने एेलान कर दिया था कि जिस दिन अमरीकी नौसेना के जहाज काओहसिउंग पहुंचे उसी दिन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने सेना के बल पर ताइवान को अपना बना लिया।

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