Edited By vasudha,Updated: 17 Jul, 2019 01:34 PM
चीन में जबरन गर्भपात किए जाने का विरोध करते हुए अमेरिका ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष को दी जाने वाली निधि को फिर से रोकेगा। अमेरिका के इस फैसले के बाद एजेंसी ने उस पर महिलाओं के स्वास्थ्य को जोखिम में डालने का आरोप लगाया है...
वाशिंगटन: चीन में जबरन गर्भपात किए जाने का विरोध करते हुए अमेरिका ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष को दी जाने वाली निधि को फिर से रोकेगा। अमेरिका के इस फैसले के बाद एजेंसी ने उस पर महिलाओं के स्वास्थ्य को जोखिम में डालने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर अमेरिका ने एजेंसी पर चीन के साथ मिलकर जबरन गर्भपात में संलिप्त होने की बात कही है।
लगातार तीसरे साल अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संस्था में योगदान देने से इनकार कर दिया है। यह कदम तब उठाया गया है कि जब ट्रंप प्रशासन अपने ईसाई देश के लिए अहम मसला बन चुके गर्भपात के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने मंगलवार को बताया कि विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि चीन की परिवार नियोजन नीतियों में अब भी जबरन गर्भपात और बिना इच्छा के नसबंदी शामिल है।
अमेरिकी कानून के अनुसार इन स्थितियों में फंडिंग रोकने की जरुरत है। बहरहाल, यूएनएफपीए ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह जोर-जबरदस्ती वाली नीतियों का विरोध करती है और अमेरिका ने चीन में उसके कार्यालय का कभी निरीक्षण नहीं किया।
एजेंसी ने एक बयान में अमेरिका से अपने फैसले पर पुन: विचार करने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण फैसला दुनियाभर में लाखों महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और जिंदगियों की रक्षा करने में यूएनएफपीए के महत्वपूर्ण काम को बाधित करेगा। चीन ने तेजी से बढ़ती अपनी आबादी पर लगाम लगाने के लिए 1970 में एक बच्चे की नीति लागू की थी जिससे बड़े पैमाने पर जबरन गर्भपात और नसबंदी की गई। तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में 2016 में अमेरिका ने यूएनएफपीए को 6.3 करोड़ डॉलर से अधिक धनराशि दी थी। वह ब्रिटेन और स्वीडन के बाद तीसरा सबसे बड़ा डोनर था।