ओबामा के भारत दौरे को लेकर विश्लेषकों ने चेताया

Edited By ,Updated: 24 Jan, 2015 01:22 AM

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अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने वहां पहुंचने वाले हैं। ऐसे में उनके दौरे को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक ...

वाशिंगटन: अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने वहां पहुंचने वाले हैं। ऐसे में उनके दौरे को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक व राजनीतिक हलके में खूब सरगर्मियां देखी जा रही हैं। कई विश्लेषकों का जहां मानना है कि उनके भारत दौरे से अमेरिका तथा भारत के संबंध और मजबूत होंगे, वहीं कुछ अन्य विश्लेषकों ने इस दौरे से की जा रही भारी-भरकम उम्मीदों को लेकर चेताया है।

अमरीका के प्रतिष्ठित समाचार-पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने ‘ओबामा एंड मोदी सी म्युचल बेनिफिट इन ब्रेकिंग मोर आइस’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हिंद महासागर में चीन की बढ़ती शक्ति के कारण भारत और अमरीका एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। भारत इसलिए भी अमेरिका के साथ मजबूत संबंध चाहता है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसपास का राजनीतिक अभिजन वर्ग अमेरिका के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध चाहता है।

रिपोर्ट के अनुसार, मोदी के अधिकतर समर्थक गुजराती व्यवसायी हैं, जिनका अमेरिका में अच्छा-खासा कारोबार है। कार्निगी एंडॉवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी एश्ले जे.टेलीस के मुताबिक, ओबामा के दूसरे भारत दौरे से दोनों देशों के संबंध और अधिक प्रगाढ़ होने की उम्मीद है, लेकिन इसके लिए भारत और अमेरिका के दृष्टिकोणों का मिलना जरूरी है। अमेरिका जहां आदान-प्रदान वाले संबंधों को वरीयता देता है, वहीं भारत बिना किसी बाध्यता के संबंध चाहता है।

वहीं, वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स के दक्षिण एशिया मामलों के वरिष्ठ अधिकारी माइकल कुगलमैन का कहना है कि ओबामा के भारत दौरे से ज्यादा उम्मीदें पालने की आवश्यकता नहीं है। ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ के अपने आलेख में उन्होंने लिखा कि इस दौरे पर वार्ता तो अच्छी होगी, लेकिन सार्थक नतीजे कम ही निकलकर सामने आएंगे।

कुगलमैन ने हालांकि यह भी लिखा कि ऐसा नहीं है कि ओबामा का दौरा लाभप्रद नहीं होगा। उन्होंने लिखा, ‘‘हम रक्षा, आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र में कुछ समझौते की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन वह 2008 के असैन्य परमाणु समझौते जैसा नहीं होगा, जो कुछ लोगों के अनुसार दोनों देशों के मजबूत होते सामरिक रिश्ते की आधारशिला है।’’

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