Edited By ,Updated: 07 Feb, 2015 05:46 PM
पाकिस्तान में महिलाओं की दशा आज भी दयनीय है। यहां तक कि नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और सामाजिक कार्यकर्त्ता मुख्तारन माई को भी यहां सम्मान नहीं मिल रहा है।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में महिलाओं की दशा आज भी दयनीय है। यहां तक कि नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और सामाजिक कार्यकर्त्ता मुख्तारन माई को भी यहां सम्मान नहीं मिल रहा है।
पाकिस्तान में महिलाओं की दशा पर यह तल्ख टिप्पणी यहां के अग्रणी समाचारपत्र ‘पाकिस्तान टुडे’ ने शनिवार को की। अखबार ने लिखा कि पाकिस्तान की आजादी के करीब सात दशक बाद भी महिलाओं की स्थिति यहां बेहद दयनीय है और यहां महिलाएं दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक पिछड़ी हैं।
महिलाओं के खिलाफ यातना, प्रताडऩा, दुष्कर्म, वैवाहिक दमन तथा सम्मान के नाम पर हत्याएं आम बातें हैं और इसलिए इन पर बहुत शोर नहीं होता।
मुख्तारन माई (सामूहिक दुष्कर्म की शिकार) और मलाला जैसी कुछ पीड़िताओं ने अपनी कोशिशों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति व सराहना पाई, लेकिन उन्हें भी पाकिस्तान में जश्न मनाने की अनुमति नहीं है। पाकिस्तान की महिलाओं ने हालांकि कई क्षेत्रों में अपना सामथ्र्य साबित किया है, जिनमें बेनजीर भुट्टो भी हैं, जो किसी भी मुस्लिम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं।
समाचारपत्र के मुताबिक, पाकिस्तान ऐसे तत्वों को लेकर समझौतावादी हो गया है, जो धर्म के नाम पर समाज पर अपनी दकियानूसी सोच थोपना चाहते हैं। यहां तक कि भुट्टो की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सरकार ने भी इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं किया।