Edited By ,Updated: 09 Apr, 2015 07:18 PM
एचआईवी के लिए एक प्रायोगिक एंटीबॉडी थेरेपी के प्रथम क्लीनिकल परीक्षण ने यह जाहिर किया है कि यह एड्स पीड़ितों के ...
वाशिंगटन : एचआईवी के लिए एक प्रायोगिक एंटीबॉडी थेरेपी के प्रथम क्लीनिकल परीक्षण ने यह जाहिर किया है कि यह एड्स पीड़ितों के रक्त में मौजूद विषाणुओं की संख्या को बहुत कम कर सकता है। इसने एड्स के टीके के लिए भी आशा की किरण जगाई है। यह पहला मौका है जब नई पीढ़ी की एचआईवी एंटीबॉडी का मानव में परीक्षण किया गया है। रॉकफेलर यूनीवर्सिटी में मिशेल नुसेंजवेग की आणविक प्रतिरक्षा प्रयोगशाला के किए अध्ययन में शोधकर्ताआंे ने पाया कि 3 बीएनसी117 नाम का एक एंटीबॉडी विषाणु को कम कर सकता है।
इससे पहले मानव में किए गए परीक्षण में एचआईवी एंटीबॉडीज के निराशाजनक परिणाम आए थे। 3 बीएनसी117 उन एंटीबॉडीज की एक नई पीढ़ी है जो एचआईवी के विषाणुओं से प्रभावशाली ढंग से लड़ता है। नुसेंजवे प्रयोगशाला में सहायक प्राध्यापक और अध्ययनकर्ताओं मंे शामिल मारिना केस्की ने बताया कि इन एंटीबॉडीज के बारे में खास बात यह है कि ये एचआईवी विषाणु से लडऩे में काफी कारगर हैं । अध्ययन के दौरान संक्रमित लोगांे के रक्त में विषाणुओं की संख्या में 300 गुना की कमी हुई। यह अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।