Edited By ,Updated: 13 Aug, 2015 11:34 PM
हालांकि विभाजनकारी शक्तियां हिन्दुओं-मुसलमानों में फूट डालने की कोशिश करती रहती हैं परंतु कुछ लोग धार्मिक सौहार्द मजबूत करने के अपने प्रयासों में भी जुटे हुए हैं।
हालांकि विभाजनकारी शक्तियां हिन्दुओं-मुसलमानों में फूट डालने की कोशिश करती रहती हैं परंतु कुछ लोग धार्मिक सौहार्द मजबूत करने के अपने प्रयासों में भी जुटे हुए हैं।
सौहार्द के इन्हीं बंधनों को मजबूत करने के लिए मुम्बई स्थित एक मुस्लिम एन.जी.ओ. ‘जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट’ ने गत दिवस छठी कक्षा से लेकर स्नातक स्तर तक के इंजीनियरिंग और मैडीकल के 400 छात्रों को 50 लाख रुपए के वजीफे दिए जिनमें 50 छात्र हिन्दू समुदाय से संबंधित थे।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश कर रहे 128 मदरसों में गायत्री मंत्र और हिन्दुओं के सोलह संस्कार पढ़ाए जा रहे हैं। इन मदरसों में ड्रैस कोड भी है परंतु इनमें प्रार्थना भी हिंदी और उर्दू के गीतों से होती है और इस्लाम धर्म के धार्मिक गीतों के साथ-साथ गायत्री जाप भी गूंजता है जिसमें मुस्लिम छात्र भी भाग लेते हैं। इन मदरसों के रोजमर्रा के रूटीन में गायत्री मंत्र सुबह की प्रार्थना का हिस्सा है।
एक ओर इन मदरसों में धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा दिया जा रहा है तो दूसरी ओर बरेली में 100 वर्ष से पुराने जामिया रिजविया मंजर-ए-इस्लाम नामक विश्वविख्यात मदरसे में अपने ‘फाजिल’ (स्नातक) कोर्स के 1200 छात्रों के लिए ‘इस्लाम और आतंकवाद’ पर एक कोर्स आरंभ किया गया है।
बरेली की विश्वविख्यात ‘आला हजरत दरगाह’ द्वारा संचालित इस मदरसे को बरेलवी सम्प्रदाय (सैक्ट) के महत्वपूर्ण संस्थानों में से एक माना जाता है। मदरसे के प्रवक्ता मौलाना शहाबुद्दीन का कहना है कि ‘‘इस्लाम में आतंकवाद या कुविचारित हिंसा का कोई स्थान नहीं है।’’
उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष काजी जैनुल साजिद्दीन मुफ्ती ने कहा है कि ‘‘पवित्र कुरान और हदीस (कुरान की व्याख्या) शांति और भाईचारे का उपदेश देते हैं। अत: समय की मांग है कि हम अपने युवाओं को शिक्षित करें कि वे आतंकवादी संगठनों के बहकावे में न आएं जो अपने कुत्सित इरादों की पूर्ति के लिए इस्लाम का दुरुपयोग कर रहे हैं।’’
मदरसे के अध्यापक छात्रों को बताएंगे कि किस प्रकार हजरत मोहम्मद साहब के दौर के विद्वानों द्वारा की गई पवित्र कुरान की व्याख्या को आतंकवादी तत्व तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं और युवाओं को गुमराह करके आतंकवाद फैलाने के लिए धर्म का दुरुपयोग कर रहे हैं।
इस पाठ्यक्रम के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी का कहना है कि ‘‘आई.एस., अल कायदा तथा तालिबान सहित अनेक आतंकवादी गिरोहों ने ‘हदीस’ से मनमाने ढंग से भ्रामक उदाहरण पेश किए हैं और इस तरह वे युवाओं को अपने गिरोहों में शामिल होने के लिए गुमराह करते हैं।’’
इस्लाम के बरेलवी सम्प्रदाय की स्थापना अत्यंत सम्मानित विद्वान इमाम अहमद रजा खान ने 19वीं शताब्दी के अंत में की थी। यह सम्प्रदाय विश्व भर में शांति और भाईचारा फैलाने की अपनी शिक्षाओं के लिए जाना जाता है और इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए जोर-जबरदस्ती का विरोध करता है।
पिछले कुछ ही दिनों में बरेलवी सम्प्रदाय द्वारा लिया गया यह दूसरा महत्वपूर्ण सुधारात्मक निर्णय है। इससे पूर्व इसी सम्प्रदाय के इमामों ने आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के परिणामस्वरूप मारे जाने वाले लोगों की ‘नमाज-ए-जनाजा’ नहीं पढ़वाने की घोषणा की थी।
इसी बीच अलीगढ़ की कोल विधानसभा सीट से सपा विधायक हाजी जमीर उल्लाह खान ने गौवध के विरुद्ध मुसलमानों को जागरूक करने के लिए अभियान आरंभ किया है। उनका कहना है कि ‘‘हिन्दू हमारे भाई हैं और गौ माता की पूजा करते हैं, अत: हमें उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए गौवंश की रक्षा करनी चाहिए।’’
मुस्लिम समाज में उठ रही अनेक सकारात्मक आवाजों के ये चंद नमूने यह संकेत देते हैं कि मुस्लिम समाज भी अपने भीतर घुसपैठ कर चुके विभाजनकारी तत्वों को पहचान कर उनके इरादों का पर्दाफाश करके सौहार्द और भाईचारा मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है और आशा करनी चाहिए कि भविष्य में ये आवाजें और मजबूत होंगी।