Edited By ,Updated: 21 Aug, 2015 11:46 PM
यह दौर विश्व में ‘करंसी वार’ जैसा है। कई देशों में करंसी की गिरावट हो रही है, इससे भारतीय रुपया भी अछूता नहीं है,
(ऋतुपर्ण दवे): यह दौर विश्व में ‘करंसी वार’ जैसा है। कई देशों में करंसी की गिरावट हो रही है, इससे भारतीय रुपया भी अछूता नहीं है, कारण दो वर्ष के सबसे निचले स्तर पर पहुंच कर हमारा रुपया डालर के मुकाबले शुक्रवार को 65.77 पैसे पर खुला। यह भी ध्यान रखना होगा कि अभी पिछले हफ्ते ही चीन ने अपनी मुद्रा युआन का क्रमश: 3किस्तों में अवमूल्यन किया था। 11 अगस्त के पहले जब एक डालर की कीमत 6.22298 युआन थी, वहीं 11 अगस्त को 1.9 प्रतिशत नीचे चली गई। 12 अगस्त को डालर की कीमत 6.33 हुई और फिर युआन और नीचे उतरकर डालर के मुकाबले 6.40410 पर चला गया।
सबसे अहम बात यह है कि मुद्रा का अवमूल्यन बाजार से नहीं बल्कि सरकार से तय होता है और चीन की हमेशा से यही रणनीति रही है कि अपनी मुद्रा को कुछ इस तरह तय करे कि निर्यात को बढ़ावा मिलता रहे। इस अवमूल्यन के बाद चीन के शेयर बाजारों में पूरे 15 दिनों तक जबरदस्त उथल-पुथल भी देखी गई लेकिन जैसे ही स्थिरता का दौर आया, युआन डालर के मुकाबले पस्त हुआ और पूरे विश्व बाजार में इसका असर साफ दिखने लगा।
चीन में निर्यात की घटती संभावना और विश्व बाजार में चीनी माल की कमजोर पड़ती मांग के चलते वहां का मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर बुरी तरह से प्रभावित है। छंटनी का दौर जारी है और कई उद्योगों से 90 फीसदी लोगों को चलता करना पड़ा। इसकी एक वजह मंदी और बढ़ती लागत भी है लेकिन यह भी सच है कि चीन में उद्योग की लागत 3 से 4 गुना बढ़ गई है। जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं।
यही कारण है कि बेरोजगारी का डर भी वहां बढ़ गया है। जून के दूसरे पखवाड़े और जुलाई के पहले सप्ताह में भी चीन का शेयर बाजार धड़ाम हुआ था, नतीजन निवेशकों में बेचैनी और घबराहट का तेज दौर चला, चीनी अर्थव्यवस्था पूरे वैश्विक समुदाय में चर्चा और विश्लेषण की वजह भी बनी।
चीन के द्वारा युआन के अवमूल्यन का जो खेल खेला गया है उससे क्या सच में उसके प्रतिद्वंद्वी फंस जाएंगे या अभिमन्यु से चक्रव्यूह में चीन खुद ही न कहीं घिर जाए? कुल मिलाकर एक तरह से ऐसा लग रहा है, चीनी मुद्रा के अवमूल्यन का असर दूसरे कई देशों को प्रभावित करेगा और उन्हें भी अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना ही पड़ेगा। वियतनाम ने तो इसी 19 अगस्त को 1 फीसदी अवमूल्यन कर दिया है लेकिन अमरीका ऊहापोह में दिख रहा है, हो सकता है इससे आपसी व्यापारिक रिश्तों में खटास भी आए। लेकिन लगता है कि कम से कम भारत को तो एक सुनहरा मौका बैठे-बिठाए मिल गया है क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनने की संभावना इस उथल-पुथल से दिख रही है।
चीन की कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते दुनिया की कई बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियांभारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रही हैं। चीन में जितना भी बाजार टूटेगा, भारत केलिए उतना ही सुनहरा मौका होगा लेकिन कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि बदलाव छोटा और इसका दुष्प्रचार बड़ा है।
लेकिन बाजार के जानकारों का मानना है कि चीन के संकट से भारत भी बच नहीं सकता। चीन कई धातुओं का दुनिया का अकेला आधा निर्यातक है। स्टील सैक्टर में गिरावट का असर यही बताता है। स्टील सैक्टर को लेकर ङ्क्षचताएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टाटा स्टील के चेयरमैन सायरस मिस्त्री कंपनी की ए.जी.एम. में स्टील सैक्टर के खराब पूरे एक साल पर ङ्क्षचता जता चुके हैं। लगता है युआन के अवमूल्यन से सैक्टर की मुश्किलें और बढऩे वाली हैं। स्टील की आय घटती जा रही है और मांग कोलेकर ङ्क्षचता बनी हुई है जिससे हमारा घरेलू बाजार भी सुस्तहै।
लेकिन बाजार के कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि चीनी युआन के अवमूल्यन से भारत की निर्यात संभावनाएं बलवती तो हो रही हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी और उन क्षेत्रों में तो जरूर जिसमें हमारा सीधा मुकाबला चीन से रहता है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि चीन-भारत का व्यापार घाटा दोगुना तक हो चुका है। कच्चे तेल के भाव, ब्याज की दरें, विकसित होते देशों का कम होता पूंजी प्रवाह, इन सबके बीच गिरता चीनी युआन, संकट चीन का या संकट में चीन, प्रश्न बड़ा है लेकिन क्या होगा, थोड़ा इंतजार करना होगा। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सफल यू.ए.ई. दौरा भारत में निवेश की संभावनाओं को बढ़ाता है कि नहीं, देखना होगा और चीन का संकट भारत के लिए अवसर बन पाएगा या नहीं।