Edited By ,Updated: 04 Sep, 2015 12:03 AM
वैटिकन (रोम) विश्व भर के 1.2 अरब कैथोलिक ईसाइयों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ है। इसके पोप को विश्व भर के कैथोलिक धर्मावलंबियों का धर्म गुरु माना जाता है।
वैटिकन (रोम) विश्व भर के 1.2 अरब कैथोलिक ईसाइयों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ है। इसके पोप को विश्व भर के कैथोलिक धर्मावलंबियों का धर्म गुरु माना जाता है। भले ही यूरोप एवं अमरीका में ‘बंद’ हो रहे चर्च यह धारणा दे रहे हों कि वैटिकन का प्रभाव कुछ कम हो रहा है परंतु ऐसा नहीं है। आज भी यह विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली धार्मिक संस्थाओं में से एक है।
28 फरवरी, 2013 को वैटिकन के 266वें पोप बने पोप फ्रांसिस ने पद ग्रहण करते ही इसमें घर कर चुकी कमजोरियां दूर करने के लिए क्रांतिकारी सुधारों के संकेत दिए थे। इसी के अंतर्गत वैटिकन के प्रशासकीय ढांचे के पुनर्गठन और लेखा पुस्तकों के निरीक्षण के अलावा उन्होंने :
* 12 जून, 2013 को पहली बार स्वीकार किया कि वैटिकन में ‘गे’ समर्थक लॉबी व भारी भ्रष्टाचार मौजूद है। उन्होंने इसकी घोर निंदा की।
* 14 जून, 2013 को पोप फ्रांसिस ने शादी से पूर्व एक साथ (लिव इन रिलेशनशिप में) रहने वाले कैथोलिक जोड़ों की ङ्क्षनदा की और कहा, ‘‘आज कई कैथोलिक बिना शादी के एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं जो सही नहीं। इससे शादी की संस्था अस्थायी हो गई है और यह एक गंभीर समस्या है।’’
* 5 मार्च, 2014 को अमरीका में मैरोनाइट कैथोलिक गिरजाघर में एक शादीशुदा व्यक्ति को पादरी बनाकर एक नई पहल की गई।
* 4 जून, 2014 को पोप ने संतानहीन दम्पतियों से कहा कि ‘‘जानवरों की तुलना में अनाथ बच्चों को प्यार देना और उन्हें गोद लेना बेहतर है।’’
* 25 दिसम्बर, 2014 को वैटिकन के उच्चाधिकारियों को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘पादरी व बिशप आदि अपना रुतबा बढ़ाने के लिए सांठ-गांठ, जोड़-तोड़ और लोभ की भावनाओं से ग्रस्त हो गए हैं। वैटिकन में बदलाव लाने की आवश्यकता है। इसने अपने आपको समय के अनुरूप नहीं बदला और यह एक बीमार संस्था बन कर रह गया है।’’
‘‘वैटिकन में सत्ता लिप्सा के शिकार कुछ लोग दिखावटी दोहरी जिंदगी जी रहे हैं। गिरजाघर सिर्फ शुभकामनाओं के आदान-प्रदान का स्थान ही नहीं पापों के प्रायश्चित और इनसे मुक्ति प्राप्ति की कामना का स्थान भी है।’’
और अब 1 सितम्बर, 2015 को पोप फ्रांसिस ने गर्भपात के संबंध में कैथोलिक चर्च की परम्परा को दरकिनार करते हुए इस दिशा में एक नई पहल की है। उल्लेखनीय है कि रोमन कैथोलिक ईसाइयों में गर्भपात को पाप माना जाता है और वर्तमान में गर्भपात करवाने वाली महिला का कैथोलिक चर्च द्वारा बहिष्कार कर दिया जाता है क्योंकि गर्भपात करना या करवाना जीव हत्या के समान ही माना जाता है।
कैथोलिक ईसाई धर्म के कट्टïरपंथियों की मान्यता के विरुद्ध फैसला देते हुए उन्होंने चर्च के पुजारियों को बुलाकर कहा कि वे पवित्र वर्ष (जुबली ईयर) के दौरान गर्भपात करवाने वाली महिलाओं और उनका गर्भपात करने वाले डाक्टरों द्वारा पश्चाताप करके माफी मांगने पर उन्हें माफ कर दें।
पोप ने इस वर्ष मार्च में दया की अवधारणा पर 8 दिसम्बर, 2015 से 20 नवम्बर, 2016 तक ‘जुबली वर्ष’ मनाने की घोषणा की है। पोप के अनुसार उन्होंने अब तक के विचारों के विपरीत यह तय किया है कि सभी पुजारी ‘जुबली वर्ष’ में उन महिलाओं को उस ‘पाप’ के लिए दोष मुक्त कर दें।
उन्होंने कहा कि गर्भपात करवाने वाली महिलाओं को अपने अस्तित्व और नैतिकता संबंधी प्रश्न झेलने पड़ते हैं और वह ऐसी अनेक महिलाओं से मिले हैं जिनके मन में इस दर्दनाक फैसले को लेकर पीड़ा थी।
पोप के इस निर्णय के संबंध में वैटिकन के मुख्य प्रवक्ता का कहना है कि ‘‘पोप के इस फैसले का उद्देश्य इस ‘पाप’ की गंभीरता को कम करने का प्रयास नहीं अपितु चर्च में दया करने की संभावना को बढ़ाना है।’’
पोप का यह निर्णय महिलाओं को ऐसी स्थिति आने से रोकने की दिशा में एक प्रयास है, जिससे उन्हें गर्भपात करवाने के अपराध बोध का शिकार न होना पड़े और वे फिर से शुद्ध सात्विक जीवन जीने को प्रेरित हों।
पाप नाशिनी और मुक्तिदायिनी गंगा में स्नान द्वारा प्रायश्चित करके नव जीवन आरम्भ करने की हिन्दू अवधारणा की भांति, पोप फ्रांसिस का यह निर्णय ईसाई समाज में समय की जरूरतों के अनुसार बदलाव लाने की दिशा में एक उचित पग करार दिया जा सकता है।